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शुक्रवार, 30 सितंबर 2016
गुरुवार, 29 सितंबर 2016
योग से चिरयौवन प्राप्ति का मार्ग - खेचरी मुद्रा एवं विपरीत करणी मुद्रा
प्राचीन काल में भारत में अनेक ऐसे योगी महात्मा थे जिन्होंने ५०० वर्ष या उससे अधिक आयु तक बिना किसी व्याधि के मनुष्य जीवन सफलता पूर्वक जिया।
महर्षि पतञ्जलि कृत अष्टाङ्गयोग सहित अनेक प्राचीन ग्रंथो में योग निर्दिष्ट मुद्राओं, महामुद्राओं का विस्तृत वर्णन मिलता है, ये मुद्राएं योग के प्रकांड विद्वान् ही जानते हैं। इन मुद्राओं में पारंगत होना अत्यंत दुष्कर है।
ये मुद्राएं समस्त सिद्धियाँ एवं चिरयौवन प्रदान करने वाली हैं, तथापि इन मुद्राओं का ६ माह से भी अधिक समय तक लगातार अभ्यास करने पर ही सिद्ध होती है। बिना योग्य गुरु के इन मुद्राओं के प्रथम सोपान को भी नहीं समझा जा सकता हैं।
आज हम ऐसी ही दो मुद्राओं के बारे में अपने पाठकों को जानकारी देंगे इन मुद्राओं का योग्य गुरु के मार्गदर्शन में नियमित अभ्यास करने पर मनुष्य सभी प्रकार की जरा व्याधियों से मुक्त होकर, चिरयौवन की प्राप्ति कर दीर्घ जीवन जी सकता है।
विपरीतकरणी मुद्रा
योगसाधना में स्वर विज्ञानं को समझना अत्यंत आवश्यक होता है, समाधिवस्था में वे ही लोग पहुँच सकते है जिन्हें चल रहे स्वर का रोध व विपरीत स्वर का उदय करने का अभ्यास हो। इस स्थिति में पहुँच कर ही संतुलन की अवस्था प्राप्त होती है तत्पश्चात ही समाधी का अनुभव होता है।
विपरीतकरणी मुद्रा में चल रहे स्वर का रोध कर विपरीत स्वर का उदय एवं शीर्षासन या सर्वांगासन लगाकर समाधिस्थ होना पड़ता है। इस क्रिया में स्वर भी विपरीत होता है तथा शरीर की मुद्रा भी विपरीत होती है अतः इसे विपरीतकरणी मुद्रा कहते हैं। जो व्यक्ति बार बार श्वास का रोध व मोचन करने में समर्थ होता है, वह दीर्घजीवन व चिरयौवन को प्राप्त कर सकता है। जरा सोचिये की गुरुत्वाकर्षण के विपरीत देह को स्थिर रखकर, विपरीत स्वर का उदय करना तत्पश्चात ध्यान लगाना कितना दुष्कर कार्य है, यह कोई सिद्ध योगी ही कर सकता है।
खेचरी महामुद्रा
खेचरी मुद्रा के बारे में कहा जाता है की प्राचीन समय में मुनि, गंधर्व, राक्षस आदि सभी कठिन तपस्या करने वाले इस मुद्रा में सिद्धस्त होते थे, क्योंकि इस मुद्रा के सिद्ध होते ही भूख -प्यास चली जाती है। और इस तरह वे कठिन तपस्या में कई दिनों तक ध्यानमग्न हो पाते थे।
खेचरी मुद्रा कैसे की जाती है इसे जानना भी अत्यंत रोचक है। जीभ को धीरे धीरे तालु के अंदर प्रवेश कराना और फिर जीभ को ऊपर की ओर उलटकर कपाल के अंदर प्रवेश कराकर दोनों भौहॉ के मध्य में दृष्टि स्थिर करने खेचरी मुद्रा होती हैं।
जब साधक ध्यान की गहन अवस्था में होता है तब ब्रह्मरन्ध्र से निकलने वाले चैतन्य की धारा का रसना (जीभ) की माध्यम से पान करने पर साधक को अद्भुत नशे का आभास होता है, सर घूमता है तथा नेत्र स्थिर एवं अर्धनिमीलित अवस्था में आ जाते है, भूख प्यास जाती रहती है, इसे खेचरी मुद्रा की सिद्ध अवस्था कहते है। सिद्ध अवस्था में जीभ को अनेक प्रकार के स्वादों का अनुभव होता है, स्वाद विशेष का फल भी अलग-अलग होता है, शास्त्रों के अनुसार दूध का स्वाद अनुभव होने पर सभी रोग नष्ट होते है एवं घी का स्वाद अनुभव होने पर अमरत्व की प्राप्ति होती है।
इससे साधक जरा एवं रोगों से रहित होकर दृढ़काय, महाबलशाली एवं कामदेव के समान सुन्दर हो जाता है। विधि पूर्वक खेचरी मुद्रा सहित साधना करने पर साधक ६ माह में सब प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है।
नोट : यह मुद्राएं सिर्फ जानकारी हेतु यहाँ बताई गई है, सिर्फ इसे पढ़कर करने का प्रयास कभी ना करें।
इन्हें केवल योग्य गुरुवों के मार्गदर्शन में ही किया जा सकता है।
खेचरी मुद्रा कैसे की जाती है इसे जानना भी अत्यंत रोचक है। जीभ को धीरे धीरे तालु के अंदर प्रवेश कराना और फिर जीभ को ऊपर की ओर उलटकर कपाल के अंदर प्रवेश कराकर दोनों भौहॉ के मध्य में दृष्टि स्थिर करने खेचरी मुद्रा होती हैं।
जब साधक ध्यान की गहन अवस्था में होता है तब ब्रह्मरन्ध्र से निकलने वाले चैतन्य की धारा का रसना (जीभ) की माध्यम से पान करने पर साधक को अद्भुत नशे का आभास होता है, सर घूमता है तथा नेत्र स्थिर एवं अर्धनिमीलित अवस्था में आ जाते है, भूख प्यास जाती रहती है, इसे खेचरी मुद्रा की सिद्ध अवस्था कहते है। सिद्ध अवस्था में जीभ को अनेक प्रकार के स्वादों का अनुभव होता है, स्वाद विशेष का फल भी अलग-अलग होता है, शास्त्रों के अनुसार दूध का स्वाद अनुभव होने पर सभी रोग नष्ट होते है एवं घी का स्वाद अनुभव होने पर अमरत्व की प्राप्ति होती है।
इससे साधक जरा एवं रोगों से रहित होकर दृढ़काय, महाबलशाली एवं कामदेव के समान सुन्दर हो जाता है। विधि पूर्वक खेचरी मुद्रा सहित साधना करने पर साधक ६ माह में सब प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है।
नोट : यह मुद्राएं सिर्फ जानकारी हेतु यहाँ बताई गई है, सिर्फ इसे पढ़कर करने का प्रयास कभी ना करें।
इन्हें केवल योग्य गुरुवों के मार्गदर्शन में ही किया जा सकता है।
शनिवार, 24 सितंबर 2016
शुक्रवार, 23 सितंबर 2016
विद्यार्थी जीवन एवं एकाग्रता
एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है,इसके बिना कुछ भी करना संभव नहीं है -स्वामी विवेकानंद
एकाग्रता में ही सफलता का सारा रहस्य निहित है-इस बात को समझ लेने वाले निश्चय ही बुद्धिमान हैं। एकाग्रता प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है,भले ही वह किसी भी कार्य में क्यों न लगा हो। संपूर्ण जगत में प्रत्येक जीवात्मा को अपना कार्य पूर्ण करने के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि एकाग्रता के अभाव में भी कार्य पूर्ण तो होते हैं,परंतु उसका मनवांछित फल प्राप्त नहीं होता है।
ऐसा नहीं है कि एकाग्रता का महत्व केवल योगीयों,विद्यार्थियों या उच्च पदों पर आसीन लोगों के लिए ही है अपितु हर वह मनुष्य जो किसी भी कार्य में लगा हो उसके लिए एकाग्रता आवश्यक है यथा लोहार,बढ़ई,स्वर्णकार,धोबी,नाई,बुनकर यदि ये लोग अपने कार्य में एकाग्रता न रखें तो इनको दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है तथा एकाग्रता के अभाव में इनके कार्य की गुणवत्ता भी स्तरीय नहीं रह जाती है।
परंतु इनमे से कोई भी व्याख्यान सुनकर या पुस्तकें पढ़कर एकाग्रता का अभ्यास नहीं करता है। ये सभी लोग अपने कार्यों में उत्पन्न परिस्थितियों के आधार पर कार्य विशेष में एकाग्रता हासिल कर लेते हैं।
ऐसा बहुत काम देखने में आता है कि कोई व्यक्ति किसी नए कार्य में शीघ्र दक्षता प्राप्त कर ले। विशेषज्ञता हासिल करने के लिए निरंतर प्रयास और एकाग्रता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
भगवान् श्री कृष्ण ने गीता उपदेश में कहा है कि "अभ्यास से ही पूर्णता की उपलब्धि होती है।"
अर्जुन ने भगवान् से यह प्रश्न किया था,कि "हे कृष्ण! इस चंचल और बलवान मन को किस तरह नियंत्रण में रखा जाये।", मन को नियंत्रित करने की समस्या उतनी ही पुरानी है जितना की मनुष्य स्वयं। अतः हमें मन को नियंत्रित करने के लिए इसकी प्रवृत्ति को समझना होगा।
मन का सीधा सम्बन्ध हमारे शरीर की ज्ञानेन्द्रियों से है,अर्थात आंख,नाक,कान,जीभ तथा त्वचा ये पाँचो मन के यन्त्र हैं। ज्योंही हमारी दृष्टि किसी आकर्षक वस्तु पर पड़ती है,त्योंही मन उस पर कूद पड़ता है। ये इन्द्रियाँ ही मन को विभिन्न दिशाओं में खींचती हैँ।अतः बुद्धि या विवेक की सहायता से इन्द्रियों को नियंत्रण में रखना आवश्यक है। कहने का अभिप्राय यह है कि उसे न देखें जिसे देखना उचित नहीं,उसे न सुने जिसे सुनना उचित नहीं,वह ना खाएं जिसे खाना उचित नहीं,वह ना करें जिसे करना उचित नही। मन को संयमित रखने की प्रत्यक्ष विधि को शम कहते हैं। ऐसा नहीं है कि ज्ञानेन्द्रियों के दमन से ही मन संयमित हो सकता है,इसकी अपनी ऊँची उड़ान इसके बिना भी होती है इस स्थिति में विवेकपूर्वक शमन कर मन को संयमित करना होता है।
अब मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिरकार इस मन को नियंत्रित करने की आवश्यकता ही क्या
अब मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिरकार इस मन को नियंत्रित करने की आवश्यकता ही क्या
है? आखिर क्यों हम उन वस्तुओं को ना करें,जो हमारे मन को अच्छी लगती हैं। इसका सही उत्तर जानना अतिआवश्यक है। यदि आप जीवन में महान उपलब्धियाँ,शांति,संतोष तथा अर्थ की प्राप्ति करना चाहते हैं,तो यह मन के नियंत्रण द्वारा ही संभव है,इसके विपरित यदि आपका मन नियंत्रण में नहीं है तो साधारण कार्य भी आपको कठिन एवं असंभव दिखाई पड़ेंगे।
यह सत्य है कि मन को एकाग्र करना अति आवश्यक है,किन्तु एकाग्र करने का उद्देश्य एवं लक्ष्य क्या होना चाहिए? इस पर एकमत नहीं हुआ जा सकता, प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही मनः संयोग के लिए अपना खास विषय या लक्ष्य चुन ले,क्योंकि मन को एकाग्र करना केवल योगियों एवं विद्यार्थियों का ही विषय मान लेना उचित नही है।
परंतु इस लेख में हम विद्यार्थियों के लिए एकाग्रता की आवश्यकता हेतु चर्चा कर रहे हैं अतः आगे हम केवल विद्यार्थी जीवन में अध्ययन हेतु कैसे एकाग्रता प्राप्त करें इस पर प्रकाश डालेंगे।
सर्वप्रथम हमे समस्या की ओर जाना होगा कि विद्यार्थी में एकाग्रता का आभाव क्यों होता है ? इसके अनेक कारण हो सकते हैं इनमे से कुछ को हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
एक बार वास्तविक समस्या को हम समझ लेते हैं,तो उसका समाधान ढूँढना कोई बड़ी बात नहीं रह जाती।
समस्या को समझ लेना ही समाधान नहीं है, इसके लिए धैर्य और विवेक के साथ उपाय करने पड़ते हैं। तदुपरांत ही फल की प्राप्ति होती है। एकाग्रता एक दिन में हासिल नहीं हो सकती, परंतु एकाग्र होने के लिए आसपास के वातावरण व सुविधाओं को बदला जा सकता है।
१)कोई भी कार्य करते समय जिसमे एकाग्रता की आवश्यक्ता हो, आरामदायक स्थिति में बैठने से कार्य करने में सरलता होती है अतः अध्ययन हेतु एक सुखद आसन की व्यवस्था करें, यथा मेज़ और कुर्सी इसके अभाव में धरती पर डेस्क रखकर दिवार की सहारे भी बैठ सकते है। एकाग्रता प्राप्त करने की प्रथम शर्त है आरामदायक आसन।
२)अध्ययन से पूर्व अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति कर स्थिर मुद्रा में शांत चित्त होकर बैठे, अनावश्यक रूप से शरीर को हिलाये डुलाय नहीं क्योंकि इससे चित्त शांत नहीं होता और अध्ययन में एक्रागता प्राप्त नहीं होती। अतः पढाई के समय स्थिर मुद्रा में बैठना अति महत्वपूर्ण है।
३)अध्ययन के लिए एक बार में एक ही विषय को चुनें और कम से कम एक घंटे तक मन को उसी विषय में एक्राग रखने की कोशिश करें।
४)अगले दस मिनट तक बार बार आपका ध्यान दिन भर हुई घटनाओं या आसपास के घटनाक्रम पर जायेगा, जो कि एक सामान्य प्रक्रिया है। इस हेतु आप विषयवस्तु पर अपना ध्यान केंद्रित करें एवं लगातार पढ़ते रहें। कुछ समय पश्चात विषय को समझते ही आपका ध्यान केंद्रित होने लगेगा।
५)इसके साथ ही आप अपने मन में स्वयं से प्रतियोगिता का भाव लाएं और तय करें कि अगले एक घंटे तक या जब तक यह पाठ समाप्त नहीं हो जाता, या मैं इसे भलीभांति नहीं समझ लेता तब तक आसन नहीं छोडूंगा। इस तरह के प्रयास का फल बहुत मीठा होता हैं।
६)अध्ययन के दौरान यदि घर का कोई सदस्य आपसे कुछ कहे या कार्य करने के लिए कहे, तो विनम्रतापूर्वक कहें की मैं इस पाठ को समाप्त करने के बाद ही आ पाऊंगा, तब तक मुझे न बुलाएँ।
७)एकाग्रता की प्राप्ति का एक उपाय यह भी है की पठनीय विषय पर अच्छी तरह ध्यान देना, इसका अर्थ है मस्तिष्क को जागरूक बनाएँ रखना अर्थात जब तक आपको कोई वाक्य व पैराग्राफ समझ में न आ जाएँ तब तक उसे पढ़ते रहें, साथ ही साथ मनन भी करें। यदि आवश्यक हो तो शब्दकोष अपने पास रखें यथासंभव उसकी भी मदद लें।
८)साफ़ सफाई और व्यवस्थित वातावरण का भी एकाग्रता से गहन सम्बन्ध है अतः इस बात का ध्यान रखें कि आपके अध्ययन कक्ष में नियमित साफ़-सफाई हो एवं सभी वस्तुएं व्यवस्थित रूप से रखी हों। इससे चित्त प्रसन्न और शांत होता है जो की एकाग्रता की वृद्धि में सहायक है।
९)एकाग्रता प्राप्ति का सबसे सबल मार्ग है अपने लक्ष्य को निर्धारित करना और उसको पाने के लिए पूर्ण विश्वास बनायें रखना, इसका एक आध्यात्मिक पक्ष भी है कि लक्ष्य प्राप्ति को अपने इष्ट की श्रद्धा से जोड़ देना, निरंतर मन यह भावना हो कि, ' हे प्रभु, मुझे कठिन परिश्रम हेतु लगन और श्रद्धा प्रदान कीजिये। ' श्रद्धा की शक्ति से आप अपने चुने हुए मार्ग के शीर्ष पर पहुँच सकते हैं।
१०)एकाग्रता का विस्तारित अनुभव करना हो तो अपने विषय या लक्ष्य के प्रति अनुराग़ पैदा कीजिये। अपने आप से, अपने लक्ष्य से, अपने विषय से प्रेम कीजिये यह आपके अंतर्निहित एकाग्रता को उच्चतम शिखर तक बढ़ा देगा। श्रद्धा एवं प्रेम के द्वारा विकसित एकाग्रता ही सहज एवं स्वाभाविक होती है, यह किसी भी मानसिक संघर्ष या तनाव से रहित होती है।
११)एकाग्रता का अंतिम सोपान है 'वैराग्य'- इसके अर्थ को कुछ इस तरह समझें कि अपने निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति होने तक बाकी सभी आकर्षणों तथा मोह से दूर रहें। अर्थात लक्ष्य के अलावा अन्य सभी के प्रति उदासीन रहना यही वैराग्य है।
इन साधनो से आप एकाग्रता का अभ्यास कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य कर सकते है। साथ ही आत्म अनुशासन संबंधी कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें इनके अभाव में आप अपने मार्ग से भटक सकते है -
यह सत्य है कि मन को एकाग्र करना अति आवश्यक है,किन्तु एकाग्र करने का उद्देश्य एवं लक्ष्य क्या होना चाहिए? इस पर एकमत नहीं हुआ जा सकता, प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही मनः संयोग के लिए अपना खास विषय या लक्ष्य चुन ले,क्योंकि मन को एकाग्र करना केवल योगियों एवं विद्यार्थियों का ही विषय मान लेना उचित नही है।
परंतु इस लेख में हम विद्यार्थियों के लिए एकाग्रता की आवश्यकता हेतु चर्चा कर रहे हैं अतः आगे हम केवल विद्यार्थी जीवन में अध्ययन हेतु कैसे एकाग्रता प्राप्त करें इस पर प्रकाश डालेंगे।
सर्वप्रथम हमे समस्या की ओर जाना होगा कि विद्यार्थी में एकाग्रता का आभाव क्यों होता है ? इसके अनेक कारण हो सकते हैं इनमे से कुछ को हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
- संभवतः वह अपने पाठ को भली-भांति समझने में असमर्थ हो।
- पौष्टिक भोजन के अभाव में मस्तिष्क सबल न बन सका हो।
- घरेलू परिस्थितियों से मन उद्विग्न या अशांत रहता हो।
- संभवतः टेलीविज़न या सिनेमा के व्यसन से ग्रस्त हो।
- उसका मन इन्द्रिय विषयों पर बुरी तरह आसक्त हो।
- यह भी संभव है की वह किसी स्थायी रोग से पीड़ित हो।
- शांतिपूर्वक आराम से बैठकर अध्ययन करने के लिए न्यूनतम सुविधाओं का अभाव हो।
- मन में किसी अज्ञात भय के कारण चित्त अशांत रहता हो।
- बुरी संगत में फंसा हो।
- यह भी संभव है की वह अपने विषयों को पसंद न करता हो उसकी रुचि अन्य किसी विषय में हो।
- किसी नशे या दुर्व्यसन की आदत पड़ गई हो जिसके कारण एकाग्रता भंग हो गयी हो।
- यदि वह छात्रावास में रहता हो और वहां की व्यवस्था अच्छी न हो।
एक बार वास्तविक समस्या को हम समझ लेते हैं,तो उसका समाधान ढूँढना कोई बड़ी बात नहीं रह जाती।
समस्या को समझ लेना ही समाधान नहीं है, इसके लिए धैर्य और विवेक के साथ उपाय करने पड़ते हैं। तदुपरांत ही फल की प्राप्ति होती है। एकाग्रता एक दिन में हासिल नहीं हो सकती, परंतु एकाग्र होने के लिए आसपास के वातावरण व सुविधाओं को बदला जा सकता है।
१)कोई भी कार्य करते समय जिसमे एकाग्रता की आवश्यक्ता हो, आरामदायक स्थिति में बैठने से कार्य करने में सरलता होती है अतः अध्ययन हेतु एक सुखद आसन की व्यवस्था करें, यथा मेज़ और कुर्सी इसके अभाव में धरती पर डेस्क रखकर दिवार की सहारे भी बैठ सकते है। एकाग्रता प्राप्त करने की प्रथम शर्त है आरामदायक आसन।
२)अध्ययन से पूर्व अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति कर स्थिर मुद्रा में शांत चित्त होकर बैठे, अनावश्यक रूप से शरीर को हिलाये डुलाय नहीं क्योंकि इससे चित्त शांत नहीं होता और अध्ययन में एक्रागता प्राप्त नहीं होती। अतः पढाई के समय स्थिर मुद्रा में बैठना अति महत्वपूर्ण है।
३)अध्ययन के लिए एक बार में एक ही विषय को चुनें और कम से कम एक घंटे तक मन को उसी विषय में एक्राग रखने की कोशिश करें।
४)अगले दस मिनट तक बार बार आपका ध्यान दिन भर हुई घटनाओं या आसपास के घटनाक्रम पर जायेगा, जो कि एक सामान्य प्रक्रिया है। इस हेतु आप विषयवस्तु पर अपना ध्यान केंद्रित करें एवं लगातार पढ़ते रहें। कुछ समय पश्चात विषय को समझते ही आपका ध्यान केंद्रित होने लगेगा।
५)इसके साथ ही आप अपने मन में स्वयं से प्रतियोगिता का भाव लाएं और तय करें कि अगले एक घंटे तक या जब तक यह पाठ समाप्त नहीं हो जाता, या मैं इसे भलीभांति नहीं समझ लेता तब तक आसन नहीं छोडूंगा। इस तरह के प्रयास का फल बहुत मीठा होता हैं।
६)अध्ययन के दौरान यदि घर का कोई सदस्य आपसे कुछ कहे या कार्य करने के लिए कहे, तो विनम्रतापूर्वक कहें की मैं इस पाठ को समाप्त करने के बाद ही आ पाऊंगा, तब तक मुझे न बुलाएँ।
७)एकाग्रता की प्राप्ति का एक उपाय यह भी है की पठनीय विषय पर अच्छी तरह ध्यान देना, इसका अर्थ है मस्तिष्क को जागरूक बनाएँ रखना अर्थात जब तक आपको कोई वाक्य व पैराग्राफ समझ में न आ जाएँ तब तक उसे पढ़ते रहें, साथ ही साथ मनन भी करें। यदि आवश्यक हो तो शब्दकोष अपने पास रखें यथासंभव उसकी भी मदद लें।
८)साफ़ सफाई और व्यवस्थित वातावरण का भी एकाग्रता से गहन सम्बन्ध है अतः इस बात का ध्यान रखें कि आपके अध्ययन कक्ष में नियमित साफ़-सफाई हो एवं सभी वस्तुएं व्यवस्थित रूप से रखी हों। इससे चित्त प्रसन्न और शांत होता है जो की एकाग्रता की वृद्धि में सहायक है।
९)एकाग्रता प्राप्ति का सबसे सबल मार्ग है अपने लक्ष्य को निर्धारित करना और उसको पाने के लिए पूर्ण विश्वास बनायें रखना, इसका एक आध्यात्मिक पक्ष भी है कि लक्ष्य प्राप्ति को अपने इष्ट की श्रद्धा से जोड़ देना, निरंतर मन यह भावना हो कि, ' हे प्रभु, मुझे कठिन परिश्रम हेतु लगन और श्रद्धा प्रदान कीजिये। ' श्रद्धा की शक्ति से आप अपने चुने हुए मार्ग के शीर्ष पर पहुँच सकते हैं।
१०)एकाग्रता का विस्तारित अनुभव करना हो तो अपने विषय या लक्ष्य के प्रति अनुराग़ पैदा कीजिये। अपने आप से, अपने लक्ष्य से, अपने विषय से प्रेम कीजिये यह आपके अंतर्निहित एकाग्रता को उच्चतम शिखर तक बढ़ा देगा। श्रद्धा एवं प्रेम के द्वारा विकसित एकाग्रता ही सहज एवं स्वाभाविक होती है, यह किसी भी मानसिक संघर्ष या तनाव से रहित होती है।
११)एकाग्रता का अंतिम सोपान है 'वैराग्य'- इसके अर्थ को कुछ इस तरह समझें कि अपने निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति होने तक बाकी सभी आकर्षणों तथा मोह से दूर रहें। अर्थात लक्ष्य के अलावा अन्य सभी के प्रति उदासीन रहना यही वैराग्य है।
इन साधनो से आप एकाग्रता का अभ्यास कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य कर सकते है। साथ ही आत्म अनुशासन संबंधी कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें इनके अभाव में आप अपने मार्ग से भटक सकते है -
- विध्यार्थी जीवन में यथासंभव ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
- सभी प्रकार के व्यसनों से दूर रहें।
- प्रतिदिन योगासन, ध्यान, प्राणायाम अवश्य करे।
- गरिष्ठ एवं तामसिक भोजन से परहेज करें।
- अश्लील साहित्य, वार्तालाप, इन्टरनेट पोर्नोग्राफी से बिलकुल दूर रहें।
- व्यर्थ की बातों, बकवास, गॉसिप, निंदा में समय व्यर्थ न करें।
- तनाव दूर करने हेतु रमणीय प्राकृतिक स्थलों की सैर करें।
- माह में एकाध उद्देश्यपरक सिनेमा देख लेना बुरा नहीं है।
- सहपाठियों से विषय सम्बंधित चर्चा करें, इससे आपके ज्ञान में वृद्धि होगी।
- अध्ययन के साथ -साथ लेखन का भी अभ्यास करें। तथा पढ़े हुए विषय के प्रश्नोंत्तरो को तीव्र गति से लिखने का प्रयास करें, परीक्षा में यह आपके समय की बचत करेगा।
परिश्रम से जी ना चुराएं, कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है,
एकाग्रता कठिन परिश्रम से ही मिल सकती है, जरुरत है कि आप
अपने लक्ष्य के प्रति प्रेम और श्रद्धा रखें।
मंगलवार, 20 सितंबर 2016
जीवन और समस्याएँ
किसी शहर में, एक आदमी प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था . वो अपनी ज़िन्दगी से खुश नहीं था , हर समय वो किसी न किसी समस्या से परेशान रहता था .
एक बार शहर से कुछ दूरी पर एक महात्मा का काफिला रुका . शहर में चारों और उन्ही की चर्चा थी.
बहुत से लोग अपनी समस्याएं लेकर उनके पास पहुँचने लगे ,
उस आदमी ने भी महात्मा के दर्शन करने का निश्चय किया .
उस आदमी ने भी महात्मा के दर्शन करने का निश्चय किया .
छुट्टी के दिन सुबह -सुबह ही उनके काफिले तक पहुंचा . बहुत इंतज़ार के बाद उसका का नंबर आया .
वह बाबा से बोला ,” बाबा , मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ , हर समय समस्याएं मुझे घेरी रहती हैं , कभी ऑफिस की टेंशन रहती है , तो कभी घर पर अनबन हो जाती है , और कभी अपने सेहत को लेकर परेशान रहता हूँ ….
बाबा कोई ऐसा उपाय बताइये कि मेरे जीवन से सभी समस्याएं ख़त्म हो जाएं और मैं चैन से जी सकूँ ?
बाबा मुस्कुराये और बोले , “ पुत्र , आज बहुत देर हो गयी है मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर कल सुबह दूंगा … लेकिन क्या तुम मेरा एक छोटा सा काम करोगे …?”
“हमारे काफिले में सौ ऊंट 🐪 हैं ,
मैं चाहता हूँ कि आज रात तुम इनका खयाल रखो …
जब सौ के सौ ऊंट 🐪 बैठ जाएं तो तुम भी सो जाना …”,
मैं चाहता हूँ कि आज रात तुम इनका खयाल रखो …
जब सौ के सौ ऊंट 🐪 बैठ जाएं तो तुम भी सो जाना …”,
ऐसा कहते हुए महात्मा👳 अपने तम्बू में चले गए ..
अगली सुबह महात्मा उस आदमी से मिले और पुछा , “ कहो बेटा , नींद अच्छी आई .”
वो दुखी होते हुए बोला :
“कहाँ बाबा , मैं तो एक पल भी नहीं सो पाया. मैंने बहुत कोशिश की पर मैं सभी ऊंटों🐪 को नहीं बैठा पाया , कोई न कोई ऊंट 🐪 खड़ा हो ही जाता …!!!
“कहाँ बाबा , मैं तो एक पल भी नहीं सो पाया. मैंने बहुत कोशिश की पर मैं सभी ऊंटों🐪 को नहीं बैठा पाया , कोई न कोई ऊंट 🐪 खड़ा हो ही जाता …!!!
बाबा बोले , “ बेटा , कल रात तुमने अनुभव किया कि चाहे कितनी भी कोशिश कर लो सारे ऊंट 🐪 एक साथ नहीं बैठ सकते …
तुम एक को बैठाओगे तो कहीं और कोई दूसरा खड़ा हो जाएगा.
इसी तरह तुम एक समस्या का समाधान करोगे तो किसी कारणवश दूसरी खड़ी हो जाएगी ..
पुत्र जब तक जीवन है ये समस्याएं तो बनी ही रहती हैं … कभी कम तो कभी ज्यादा ….”
“तो हमें क्या करना चाहिए ?” , आदमी ने जिज्ञासावश पुछा .
“इन समस्याओं के बावजूद जीवन का आनंद लेना सीखो …
कल रात क्या हुआ ?
1) कई ऊंट 🐪 रात होते -होते खुद ही बैठ गए ,
2) कई तुमने अपने प्रयास से बैठा दिए ,
3) बहुत से ऊंट 🐪 तुम्हारे प्रयास के बाद भी नहीं बैठे … और बाद में तुमने पाया कि उनमे से कुछ खुद ही बैठ गए ….
1) कई ऊंट 🐪 रात होते -होते खुद ही बैठ गए ,
2) कई तुमने अपने प्रयास से बैठा दिए ,
3) बहुत से ऊंट 🐪 तुम्हारे प्रयास के बाद भी नहीं बैठे … और बाद में तुमने पाया कि उनमे से कुछ खुद ही बैठ गए ….
कुछ समझे ….??
समस्याएं भी ऐसी ही होती हैं..
समस्याएं भी ऐसी ही होती हैं..
1) कुछ तो अपने आप ही ख़त्म हो जाती हैं ,
2) कुछ को तुम अपने प्रयास से हल कर लेते हो …
3) कुछ तुम्हारे बहुत कोशिश करने पर भी हल नहीं होतीं ,
2) कुछ को तुम अपने प्रयास से हल कर लेते हो …
3) कुछ तुम्हारे बहुत कोशिश करने पर भी हल नहीं होतीं ,
ऐसी समस्याओं को समय पर छोड़ दो … उचित समय पर वे खुद ही ख़त्म हो जाती हैं.!!
जीवन है, तो कुछ समस्याएं रहेंगी ही रहेंगी …. पर इसका ये मतलब नहीं की तुम दिन रात उन्ही के बारे में सोचते रहो …
समस्याओं को एक तरफ रखो
और जीवन का आनंद लो…
और जीवन का आनंद लो…
चैन की नींद सो …
जब उनका समय आएगा वो खुद ही हल हो जाएँगी"...
बिंदास मुस्कुराओ क्या ग़म हे,..
ज़िन्दगी में टेंशन किसको कम हे..
ज़िन्दगी में टेंशन किसको कम हे..
अच्छा या बुरा तो केवल भ्रम हे..
जिन्दगी का नाम ही
कभी ख़ुशी कभी ग़म हे..!!
जिन्दगी का नाम ही
कभी ख़ुशी कभी ग़म हे..!!
शुक्रवार, 16 सितंबर 2016
सोमवार, 12 सितंबर 2016
वाद्य-यंत्रों द्वारा रोगोपचार
सनातन हिन्दू धर्म जितना पुराना है,उसकी वैभवशाली प्राचीन संस्कृति की अवधारणाएँ भी उतनी ही महान हैं। प्राचीन समय में रोगों का आक्रमण मानव शरीर पर इतना भयानक नहीं था जितना आज दिखाई पड़ता है। इसका सबसे प्रमुख कारण है हमारी जीवनशैली,दिनचर्या और विशेषतः खान-पान।
वर्तमान जीवन में मनुष्य की आवश्यकताएँ और प्राथमिकताएँ पूर्णतया बदल चुकी हैं, जिसका परिणाम अस्वस्थ पीढ़ी के रूप में सम्पूर्ण मानव समाज भुगत रहा है।
उपचार की कितनी ही विधाएँ आज विद्यमान हैं,परंतु रोग कम होने की अपेक्षा बढ़ते जा रहे हैं,निःसंदेह यह विधाएँ औषधि रूप में रोगों पर प्रभाव डालती हैं परंतु इनके दुष्प्रभाव भी कम नहीं है।
यह एक सार्वभौमिक सत्य है,कि पृथ्वी में चुम्बकीय शक्ति विद्यमान है,हमारे सौरमंडल में सूर्य सहित सभी ग्रहों की अपनी शक्तियाँ एवं प्रभाव है तथा वे प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से मानव जीवन पर प्रभाव डालते हैं।
इसी प्रकार प्राचीन भारतीय संगीत एवं इसमें प्रयुक्त वाद्य-यंत्रों से निकलने वाली ध्वनियों में भी चैतन्य व ऊर्जा का प्रवाह विद्यमान होता है जो श्रवण करने वाले व्यक्ति पर अपना प्रभाव डालने में सक्षम होते हैं। प्राचीन समय से ही सभी समुदाय के लोगों में भजन-कीर्तन आदि के माध्यम से इन वाद्य-यंत्रों का प्रयोग किया जाता रहा है,इनको सुनने मात्र से ही मानसिक शांति और सूक्ष्म तरंगों का आभास होता है। परंतु यह कम ही लोग जानते हैं,कि प्राचीन समय से ही इनका प्रयॊग विभिन्न रोगों के उपचार हेतु भी चला आ रहा है।
पश्चिमी देशों में बड़े-बड़े अस्पताल और चिकित्सक इनका प्रयोग करके रोगियों की स्थिति में आश्चर्यजनक सुधार एवं परिवर्तन के गवाह हैं। कई चिकित्सकीय अनुसंधानों में यह पाया गया है कि हलके संगीत एवं सुरीले गीतोँ से रोगियों को उपचार में अत्यधिक लाभ हुआ है।
मित्रों आज हम भी कुछ ऐसे ही वाद्य-यंत्रों के विषय में आपको बता रहे हैं जो विभिन्न रोगों में रोगियों को लाभ पहुँचा सकते हैं -
शहनाई:- शहनाई वादन को सुनने से रक्त-चाप,चर्मरोग,गुप्तरोग,बवासीर,रक्त-विकार,नसोँ में खिंचाव,माँसपेशियों की अकड़न,गठिया,आर्थराइटिस आदि रोगों में लाभ होता है।
वीणा,सितार एवं सरोद:- गुर्दे के रोग,मूत्र-मार्ग के विकार,पथरी,सर्वाइकल कैंसर,मधुमेह के रोगियों को वीणा, सितार वादन एवं सरोद के श्रवण से आराम मिलता है।
संतूर एवं जल-तरंग:- पेट के समस्त रोग,जिगर के रोग,अल्सर,गैस कब्ज़ की समस्याएँ,अमाशय-पित्ताशय अदि के रोगों में संतूर वादन या जल-तरंग के श्रवण से रोगी की स्थिति में सुधार हो सकता है।
पखावज एवं मृदंग:- ह्रदय रोगों,फेफड़ों के रोगों एवं ह्रदय की दुर्बलता,असामान्य धड़कन,छाती में भारीपन,कन्धों का दर्द एवं अकड़न में पखावज एवं मृदंग की लय-युक्त थाप के श्रवण से लाभ प्राप्त होता है।
बांसुरी:- गले के समस्त रोग,थाइरोइड,कान के रोग,श्वशन-तंत्र के रोग आदि में बांसुरी वादन का नियमित श्रवण करने से उपचार में सहायता प्राप्त होती है।
ॐ का नाद:- आधुनिक जीवन का सबसे भयानक रोग और अन्य शारीरिक रोगों की जड़ तनाव है। मानव शरीर में सबसे घातक प्रभाव तनाव व चिंता से ही होता है,इस स्थिति में ॐ के नाद या उच्चारण का नियमित श्रवण करने से अत्यधिक लाभ होता है। समस्त मस्तिष्क सम्बंधित रोगों के लिए भी यह लाभकारी है।
श्रवण के लिए उपयुक्त समय :- यदि आप उपरोक्त उपचार पद्धति का पूर्ण लाभ लेना चाहते हैं तो ध्यान रखे की इसका सर्वाधिक उपयुक्त समय है प्रातः ब्रम्ह मुहूर्त की बेला या रात्रि शयन पूर्व - अधिक लाभ हेतु ब्रम्ह मुहूर्त की बेला को चुने तो श्रेष्ठ है क्योंकि इस समय वातावरण में शांति,आध्यात्मिक भाव,एकाग्रता आदि का समन्वय होता है अतः लाभ प्राप्त होता है।
स्थिति:- इसके लिए आप ध्यान-मुद्रा में सिद्धासन में बैठ सकते हैं , भूमि पर बैठने में परेशानी हो तो कुर्सी या सोफे इत्यादि पर भी बैठ सकते हैं शरीर की मुद्रा आरामदायक स्थिति में होनी चाहिये। यदि रोगी की अवस्था अधिक ख़राब है तो शय्या पर लेटकर शवासन की मुद्रा में भी श्रवण किया जा सकता है।
श्रवण की लिए मध्यम धीमा स्वर चुने श्वास गहरी एवं धीमी गति से लें ध्यान को एकाग्र करें धीरे-धीरे अपने ध्यान को पीड़ित अंगों पर ले जाये,४० मिनिट से १ घंटे तक श्रवण किया जा सकता है। इस उपचार पद्धति में शीघ्र लाभ की कामना ना रखें,नियमित रूप से श्रवण करने पर धीरे-धीरे एवं स्थायी उपचार होता है।
गुरुवार, 1 सितंबर 2016
आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगीं इस गणेश चतुर्थी पर......... जानिए कैसे ?
प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी गणपति घर-घर विराजेंगे ऐसे पावन पर्व पर हर कोई चाहता है कि विघ्नहर्ता हमारे घर पधारें एवं हमारे सारे कष्टों को हर लें।
१ ) सर्वप्रथम घर मेँ जहाँ गणपति जी की स्थापना करनी है , उस स्थान की चतुर्थी से एक दिन पूर्व ही अच्छी तरह से साफ़ -सफाई कर शुद्धिकरण कर लें। इस कार्य में घर के बच्चो का भी सहयोग लें। उन्हें बताएँ कि विघ्नहर्ता घर पर पधारने वाले है, अतः घर की साफ़-सफाई आवश्यक है।
२)अब बारी आती है प्रतिमा (विग्रह) की, जब प्रतिमा लेने जाएँ घर के बच्चो को अवश्य साथ ले जाएँ। प्रतिमा ऐसी दुकान से ले जहाँ शुद्ध मिट्टी की प्रतिमाएँ मिलती हों। बहुत बड़ी और भारी प्रतिमा न लें। प्रतिमा लेते समय ध्यान रखें गणेशजी की सूँड उनके बायीं ओर मुड़ी हो तथा प्रभु के नयन नीचे की ओर ना झुकें हों। प्रतिमा देखने पर हमें ऐसा महसूस हो की प्रभु हमारी तरफ देख रहे हैं। प्रभु की चार भुजाओं में दाहिने तरफ की नीचे की भुजा वर मुद्रा में हो। प्रतिमा कहीं से खंडित न हो इसका ध्यान रखें। मूषक लेना न भूलें।
३)प्रतिमा लेने के पश्चात प्रभु के नयनो की तरफ देखते हुए मन ही मन पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रार्थना करें कि "हे गजानन , कृपा करके हमारे घर पर पधारें और हमारी पूजा -सेवा स्वीकार करें। " इस तरह हर्षोल्लास के साथ प्रभु को घर पर ले आयें।
४)पूजा एवँ स्थापना के मुहुर्त का विचार योग्य विद्वान पंडित से पूछकर पहले ही निर्धारित कर लें। पूजा के पूर्व प्रभु के विराजने हेतु सुन्दर चौकी या सिंघासन रखें उस पर हल्दी से अष्टदल कमल बनायें इसके ऊपर लाल वस्त्र बिछाकर शुभ समय में प्रभु को विराजित करे।
५) प्रतिमा के दाहिनी ओर कलश एवं बायीं ओर नवग्रह मंडल की स्थापना करें। पूजा स्थल को आम्र पत्तों के तोरण व फूलों से सजाएँ।
६)पूजा की सभी सामग्री को एक थाली में सजाकर रख दें। भोग सामग्री यथा फल ,मिठाई, मोदक आदि सभी सजाकर प्रभु के सम्मुख रखें। पंचामृत ,पान के पत्ते, दूर्वा, फूलों की माला आदि सभी पूजा स्थल पर रख लें।
७) पूजा प्रारम्भ करने के पूर्व हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें , हाथ धोएं पुनः हाथ में चावल,फूल, जल लेकर संकल्प करें, प्रार्थना करें। संकल्प जल को भूमि पर छोड़कर हस्त प्रच्छालन करें , फिर पूजा प्रारम्भ करें।
८) सर्वप्रथम दीपक, अगरबत्ती एवं धूप प्रज्ज्वलित कर लें। इसके बाद मन ही मन श्री गणेश मंत्र का उच्चारण करते हुए, प्रभु के विग्रह पर दूर्वाकुरों से शुद्ध जल के छीटे दें , पश्चात पंचामृत से स्नान कराएँ एवं पुनः शुद्ध जल से स्नान करायें (ध्यान दें मिट्टी की प्रतिमा में स्नान का अर्थ अल्प मात्रा में सिर्फ छीटे देने से होता हैं ) इसके बाद प्रभु को यग्योपवीत अर्पण करें, मौली अर्पण करें, वस्त्रादि पहनायें यदि आभूषण उपलब्ध हों तो वह भी पहनाएँ। हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।
९)इसके बाद विधिवत पूजन करें गणेशजी के मस्तक पर कुमकुम अक्षत का तिलक करें, चन्दन (श्वेत या रक्त) प्रभु की भुजाओं में लगाएँ ,केसर का लेप नाभि स्थल में करें , सिन्दूर का लेप गणेशजी के चरणों में करें। इसके बाद प्रभु के वस्त्रों में सुगन्धित इत्र लगाएँ।
१०) तत्पश्चात गणेशजी को पुष्प,अक्षत ,गुलाल अर्पण करें। ताजे दुर्वांकुर जल से धोकर पाँच शाख वाले दुर्वांकुर प्रभु के चरणों में अर्पण करें।
११) इसके बाद यथाशक्ति प्रभु को मोदक, मिष्ठान्न, फल, सूखे मेवे इत्यादि भोग लगाएँ। धूप दीप दिखाएँ। मन ही मन श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करें। इसके बाद प्रभु को लौंग इलायची युक्त ताम्बूल अर्पण करें।
१२ )इसी तरह कलश देवता व नवग्रह मंडल की पूजा करें तत्पश्चात सभी
सदस्य मिलकर गणेशजी की आरती करें। आरती करते समय चरणों की चार आरती, नाभि व वक्ष स्थल की तीन आरती एवं मुखारविंद की चार आरती उतारे। पश्चात कर्पूर से आरती करें दक्षिणा अर्पण करें , प्रदक्षिणा कर सभी सदस्यों को आरती दें।
१३)पूरी पूजा के दौरान घर के किसी सदस्य से घण्टी बजाते रहने को कहें। आरती के बाद शंखनाद करें। पूजा में मन ही मन गणेश मंत्र का जाप करते रहें। पूर्ण श्रद्धा व भाव से पूजा करें।
१४)उपरोक्त विधिपूर्वक पूजा चतुर्थी के दिन स्थापना के समय करें। शेष दिनों में निश्चित समय पर प्रभु को भोग लगाएँ एवं प्रातः सायं आरती करें व प्रतिदिन गणेशजी के भजन कीर्तन करें।
१५)पूजा स्थल की प्रत्येक दिन साफ़ सफाई अवश्य करें, बसी फूलों व पूजा सामग्री को अलग से किसी थैली में जमा अनंत चतुर्दशी के दिन साथ में विसर्जित करें।
अनंत चतुर्दशी के दिन गणपतिजी की खास पूजा कैसे करें यह हम आपको शीघ्र ही बताएँगे।
नोट : यदि आपकी कोई मनोकामना हो , या कोई कष्ट हो तो आप गणेशोत्सव के दौरान पूरे दस दिनों तक
संकटनाशन गणेश स्त्रोत
संतान प्राप्ति हेतु गणेश स्तोत्र
लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गणेश स्तोत्र
श्री गणेशजी के १०८ नाम
श्री गणेश चालीसा
आदि का श्रद्धापूर्वक, नियमपूर्वक शुद्ध एवं पवित्र तन मन से पाठ करें। यथाशक्ति ॐ गं गणपतये नमः का जाप करें।
पूरे उत्सव के दौरान काम,क्रोध,ईर्ष्या,लोभ,निंदा आदि दुर्गुणों से दूर रहें आपकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगीं।
प्रभु गणेशजी महाराज आप सभी को आशीर्वादित करें इसी मंगलकामना के साथ
॥ गणपति बाप्पा मोरया ॥
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