शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

विद्यार्थी जीवन एवं एकाग्रता





एकाग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की नींव है,इसके बिना कुछ भी करना संभव नहीं है -स्वामी विवेकानंद 



       

            एकाग्रता में ही सफलता का सारा रहस्य निहित है-इस बात को समझ लेने वाले निश्चय ही बुद्धिमान हैं। एकाग्रता प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है,भले ही वह किसी भी कार्य में क्यों न लगा हो। संपूर्ण जगत में प्रत्येक जीवात्मा को अपना कार्य पूर्ण करने के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि एकाग्रता के अभाव में भी कार्य पूर्ण तो होते हैं,परंतु उसका मनवांछित फल प्राप्त नहीं होता है। 

ऐसा नहीं है कि एकाग्रता का महत्व केवल योगीयों,विद्यार्थियों या उच्च पदों पर आसीन लोगों के लिए ही है अपितु हर वह मनुष्य जो किसी भी कार्य में लगा हो उसके लिए एकाग्रता आवश्यक है यथा लोहार,बढ़ई,स्वर्णकार,धोबी,नाई,बुनकर यदि ये लोग अपने कार्य में एकाग्रता न रखें तो इनको दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है तथा एकाग्रता के अभाव में इनके कार्य की गुणवत्ता भी स्तरीय नहीं रह जाती है। 

परंतु इनमे से कोई भी व्याख्यान सुनकर या पुस्तकें पढ़कर एकाग्रता का अभ्यास नहीं करता है। ये सभी लोग अपने कार्यों में उत्पन्न परिस्थितियों के आधार पर कार्य विशेष में एकाग्रता हासिल कर लेते हैं। 

ऐसा बहुत काम देखने में आता है कि कोई व्यक्ति किसी नए कार्य में शीघ्र दक्षता प्राप्त कर ले। विशेषज्ञता हासिल करने के लिए निरंतर प्रयास और एकाग्रता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 

भगवान् श्री कृष्ण ने गीता उपदेश में कहा है कि "अभ्यास से ही पूर्णता की उपलब्धि होती है।"
अर्जुन ने भगवान् से यह प्रश्न किया था,कि "हे कृष्ण! इस चंचल और बलवान मन को किस तरह नियंत्रण में रखा जाये।", मन को नियंत्रित करने की समस्या उतनी ही पुरानी है जितना की मनुष्य स्वयं। अतः हमें मन को नियंत्रित करने के लिए इसकी प्रवृत्ति को समझना होगा। 

मन का सीधा सम्बन्ध हमारे शरीर की ज्ञानेन्द्रियों से है,अर्थात आंख,नाक,कान,जीभ तथा त्वचा ये पाँचो मन के यन्त्र हैं। ज्योंही हमारी दृष्टि किसी आकर्षक वस्तु पर पड़ती है,त्योंही मन उस पर कूद पड़ता है। ये इन्द्रियाँ ही मन को विभिन्न दिशाओं में खींचती हैँ।अतः बुद्धि या विवेक की सहायता से इन्द्रियों को नियंत्रण में रखना आवश्यक है। कहने का अभिप्राय यह है कि उसे न देखें जिसे देखना उचित नहीं,उसे न सुने जिसे सुनना उचित नहीं,वह ना खाएं जिसे खाना उचित नहीं,वह ना करें जिसे करना उचित नही। मन को संयमित रखने की प्रत्यक्ष विधि को शम कहते हैं। ऐसा नहीं है कि ज्ञानेन्द्रियों के दमन से ही मन संयमित हो सकता है,इसकी अपनी ऊँची उड़ान इसके बिना भी होती है इस स्थिति में विवेकपूर्वक शमन कर मन को संयमित करना होता है।

अब मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिरकार इस मन को नियंत्रित करने की आवश्यकता ही क्या 
है? आखिर क्यों हम उन वस्तुओं को ना करें,जो हमारे मन को अच्छी लगती हैं। इसका सही उत्तर जानना अतिआवश्यक है। यदि आप जीवन में महान उपलब्धियाँ,शांति,संतोष तथा अर्थ की प्राप्ति करना चाहते हैं,तो यह मन के नियंत्रण द्वारा ही संभव है,इसके विपरित यदि आपका मन नियंत्रण में नहीं है तो साधारण कार्य भी आपको कठिन एवं असंभव दिखाई पड़ेंगे।

यह सत्य है कि मन को एकाग्र करना अति आवश्यक है,किन्तु एकाग्र करने का उद्देश्य एवं लक्ष्य क्या होना चाहिए? इस पर एकमत नहीं हुआ जा सकता, प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही मनः संयोग के लिए अपना खास विषय या लक्ष्य चुन ले,क्योंकि मन को एकाग्र करना केवल योगियों एवं विद्यार्थियों का ही विषय मान लेना उचित नही है।

परंतु इस लेख में हम विद्यार्थियों के लिए एकाग्रता की आवश्यकता हेतु चर्चा कर रहे हैं अतः आगे हम केवल विद्यार्थी जीवन में अध्ययन हेतु कैसे एकाग्रता प्राप्त करें  इस पर प्रकाश डालेंगे।

सर्वप्रथम हमे समस्या की ओर जाना होगा कि विद्यार्थी में एकाग्रता का आभाव क्यों होता है ? इसके अनेक कारण हो सकते हैं इनमे से कुछ को हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।


  •  संभवतः वह अपने पाठ को भली-भांति समझने में असमर्थ हो।
  •  पौष्टिक भोजन के अभाव में मस्तिष्क सबल न बन सका हो।
  •  घरेलू परिस्थितियों से मन उद्विग्न या अशांत रहता हो।
  •  संभवतः टेलीविज़न या सिनेमा के व्यसन से ग्रस्त हो।
  •  उसका मन इन्द्रिय विषयों पर बुरी तरह आसक्त हो।
  •  यह भी संभव है की वह किसी स्थायी रोग से पीड़ित हो।
  •  शांतिपूर्वक आराम से बैठकर अध्ययन करने के लिए न्यूनतम सुविधाओं का अभाव हो।
  •  मन में किसी अज्ञात भय के कारण चित्त अशांत रहता हो।
  •  बुरी संगत में फंसा हो।
  •  यह भी संभव है की वह अपने विषयों को पसंद न करता हो उसकी रुचि अन्य किसी विषय में हो।
  •  किसी नशे या दुर्व्यसन की आदत पड़ गई हो जिसके कारण एकाग्रता भंग हो गयी हो।
  •  यदि वह छात्रावास में रहता हो और वहां की व्यवस्था अच्छी न हो।


एक बार वास्तविक समस्या को हम समझ लेते हैं,तो उसका समाधान ढूँढना कोई बड़ी बात नहीं रह जाती।
समस्या को समझ लेना ही समाधान नहीं है, इसके लिए धैर्य और विवेक के साथ उपाय करने पड़ते हैं। तदुपरांत ही फल की प्राप्ति होती है। एकाग्रता एक दिन में हासिल नहीं हो सकती, परंतु एकाग्र होने के लिए आसपास के वातावरण व सुविधाओं को बदला जा सकता है।

१)कोई भी कार्य करते समय जिसमे एकाग्रता की आवश्यक्ता हो, आरामदायक स्थिति में बैठने से कार्य करने में सरलता होती है अतः अध्ययन हेतु एक सुखद आसन की व्यवस्था करें, यथा मेज़ और कुर्सी इसके अभाव में धरती पर डेस्क रखकर दिवार की सहारे भी बैठ सकते है। एकाग्रता प्राप्त करने की प्रथम शर्त है आरामदायक आसन।

२)अध्ययन से पूर्व अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति कर स्थिर मुद्रा में शांत चित्त होकर बैठे, अनावश्यक रूप से शरीर को हिलाये डुलाय नहीं क्योंकि इससे चित्त शांत नहीं होता और अध्ययन में एक्रागता प्राप्त नहीं होती। अतः पढाई के समय स्थिर मुद्रा में बैठना अति महत्वपूर्ण है।

३)अध्ययन  के लिए एक  बार में एक ही विषय को चुनें और कम से कम एक घंटे तक मन को उसी विषय में एक्राग रखने की कोशिश करें।

४)अगले दस मिनट तक बार बार आपका ध्यान दिन भर हुई घटनाओं या आसपास के घटनाक्रम पर जायेगा, जो कि एक सामान्य प्रक्रिया है। इस हेतु आप विषयवस्तु  पर  अपना ध्यान केंद्रित करें एवं लगातार पढ़ते रहें।  कुछ समय पश्चात विषय को समझते ही आपका ध्यान केंद्रित होने लगेगा।

५)इसके साथ ही आप अपने मन में स्वयं से प्रतियोगिता का भाव लाएं और तय करें कि अगले एक घंटे तक या जब तक यह पाठ समाप्त नहीं हो जाता, या मैं इसे भलीभांति नहीं समझ लेता तब तक आसन नहीं छोडूंगा।  इस तरह के प्रयास का फल बहुत मीठा होता हैं।

६)अध्ययन के दौरान यदि घर का कोई सदस्य आपसे कुछ कहे या कार्य करने के लिए कहे, तो विनम्रतापूर्वक कहें की मैं इस पाठ को समाप्त करने के बाद ही आ पाऊंगा, तब तक मुझे न बुलाएँ।

७)एकाग्रता की प्राप्ति का एक उपाय यह भी है की पठनीय विषय पर अच्छी तरह ध्यान देना, इसका अर्थ है मस्तिष्क को जागरूक बनाएँ रखना अर्थात जब तक आपको कोई वाक्य व पैराग्राफ समझ में न आ जाएँ तब तक उसे पढ़ते रहें, साथ ही साथ मनन भी करें। यदि आवश्यक हो तो शब्दकोष अपने पास रखें यथासंभव उसकी भी मदद लें।

८)साफ़ सफाई और व्यवस्थित वातावरण का भी एकाग्रता से गहन सम्बन्ध है अतः इस बात का ध्यान रखें कि आपके अध्ययन कक्ष में नियमित साफ़-सफाई हो एवं सभी वस्तुएं व्यवस्थित रूप से रखी हों। इससे चित्त प्रसन्न और शांत होता है जो की एकाग्रता की वृद्धि में सहायक है।

९)एकाग्रता प्राप्ति का सबसे सबल मार्ग है अपने लक्ष्य को निर्धारित करना और उसको पाने के लिए पूर्ण विश्वास बनायें रखना, इसका एक आध्यात्मिक पक्ष भी है कि लक्ष्य प्राप्ति को अपने इष्ट की श्रद्धा से जोड़ देना, निरंतर मन यह भावना हो कि, ' हे प्रभु, मुझे  कठिन परिश्रम हेतु लगन और श्रद्धा प्रदान कीजिये। ' श्रद्धा की शक्ति से आप अपने चुने हुए मार्ग के शीर्ष पर पहुँच सकते हैं।

१०)एकाग्रता का विस्तारित अनुभव करना हो तो अपने विषय या लक्ष्य के प्रति अनुराग़ पैदा कीजिये। अपने आप से, अपने लक्ष्य से, अपने विषय से प्रेम कीजिये यह आपके अंतर्निहित एकाग्रता को उच्चतम शिखर तक बढ़ा देगा। श्रद्धा एवं प्रेम के द्वारा विकसित एकाग्रता ही सहज एवं स्वाभाविक होती है, यह किसी भी मानसिक संघर्ष या तनाव से रहित होती है।

११)एकाग्रता का अंतिम सोपान है 'वैराग्य'- इसके अर्थ को कुछ इस तरह समझें कि अपने निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति होने तक बाकी सभी आकर्षणों तथा मोह से दूर रहें। अर्थात लक्ष्य के अलावा अन्य सभी के प्रति उदासीन रहना यही वैराग्य है।

इन साधनो से आप एकाग्रता का अभ्यास कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य कर सकते है। साथ ही आत्म अनुशासन संबंधी कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें इनके अभाव में आप अपने मार्ग से भटक सकते है -

  • विध्यार्थी जीवन में यथासंभव ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। 
  • सभी प्रकार के व्यसनों से दूर रहें। 
  • प्रतिदिन योगासन, ध्यान, प्राणायाम अवश्य करे। 
  • गरिष्ठ एवं तामसिक भोजन से परहेज करें। 
  • अश्लील साहित्य, वार्तालाप, इन्टरनेट पोर्नोग्राफी से बिलकुल दूर रहें। 
  • व्यर्थ की बातों, बकवास, गॉसिप, निंदा में समय व्यर्थ न करें। 
  • तनाव दूर करने हेतु रमणीय प्राकृतिक स्थलों की सैर करें। 
  • माह में एकाध उद्देश्यपरक सिनेमा देख लेना बुरा नहीं है। 
  • सहपाठियों से विषय सम्बंधित चर्चा करें, इससे आपके ज्ञान में वृद्धि होगी। 
  • अध्ययन के साथ -साथ लेखन का भी अभ्यास करें। तथा पढ़े हुए विषय के प्रश्नोंत्तरो को तीव्र गति से लिखने का प्रयास करें, परीक्षा में यह आपके समय की बचत करेगा। 
अंत में यही कहना चाहूंगा की -
परिश्रम से जी ना चुराएं, कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है,
एकाग्रता कठिन परिश्रम से ही मिल सकती है, जरुरत है कि आप 
अपने लक्ष्य के प्रति प्रेम और श्रद्धा रखें। 










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