सोमवार, 12 सितंबर 2016

वाद्य-यंत्रों द्वारा रोगोपचार


सनातन हिन्दू धर्म जितना पुराना है,उसकी वैभवशाली प्राचीन संस्कृति की अवधारणाएँ भी उतनी ही महान हैं। प्राचीन समय में रोगों का आक्रमण मानव शरीर पर इतना भयानक नहीं था जितना आज दिखाई पड़ता है। इसका सबसे प्रमुख कारण है हमारी जीवनशैली,दिनचर्या और विशेषतः खान-पान। 

वर्तमान जीवन में मनुष्य की आवश्यकताएँ और प्राथमिकताएँ पूर्णतया बदल चुकी हैं, जिसका परिणाम अस्वस्थ पीढ़ी के रूप में सम्पूर्ण मानव समाज भुगत रहा है। 

उपचार की कितनी ही विधाएँ आज विद्यमान हैं,परंतु रोग कम होने की अपेक्षा बढ़ते जा रहे हैं,निःसंदेह यह विधाएँ औषधि रूप में रोगों पर प्रभाव डालती हैं परंतु इनके दुष्प्रभाव भी कम नहीं है। 

यह एक सार्वभौमिक सत्य है,कि पृथ्वी में चुम्बकीय शक्ति विद्यमान है,हमारे सौरमंडल में सूर्य सहित सभी ग्रहों की अपनी शक्तियाँ एवं प्रभाव है तथा वे प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से मानव जीवन पर प्रभाव डालते हैं।

इसी प्रकार प्राचीन भारतीय संगीत एवं इसमें प्रयुक्त वाद्य-यंत्रों से निकलने वाली ध्वनियों में भी चैतन्य व ऊर्जा का प्रवाह विद्यमान होता है जो श्रवण करने वाले व्यक्ति पर अपना प्रभाव डालने में सक्षम होते हैं। प्राचीन समय से ही सभी समुदाय के लोगों में भजन-कीर्तन आदि के माध्यम से इन वाद्य-यंत्रों का प्रयोग किया जाता रहा है,इनको सुनने मात्र से ही मानसिक शांति और सूक्ष्म तरंगों का आभास होता है। परंतु यह कम ही लोग जानते हैं,कि प्राचीन समय से ही इनका प्रयॊग विभिन्न रोगों के उपचार हेतु भी चला आ रहा है। 

पश्चिमी देशों में बड़े-बड़े अस्पताल और चिकित्सक इनका प्रयोग करके रोगियों की स्थिति में आश्चर्यजनक सुधार एवं परिवर्तन के गवाह हैं। कई चिकित्सकीय अनुसंधानों में यह पाया गया है कि हलके संगीत एवं सुरीले गीतोँ से रोगियों को उपचार में अत्यधिक लाभ हुआ है।

मित्रों आज हम भी कुछ ऐसे ही वाद्य-यंत्रों के विषय में आपको बता रहे हैं जो विभिन्न रोगों में रोगियों को लाभ पहुँचा सकते हैं -



शहनाई:- शहनाई वादन को सुनने से रक्त-चाप,चर्मरोग,गुप्तरोग,बवासीर,रक्त-विकार,नसोँ में खिंचाव,माँसपेशियों की अकड़न,गठिया,आर्थराइटिस आदि रोगों में लाभ होता है।




वीणा,सितार एवं सरोद:- गुर्दे के रोग,मूत्र-मार्ग के विकार,पथरी,सर्वाइकल कैंसर,मधुमेह के रोगियों को वीणा, सितार वादन एवं सरोद के श्रवण से आराम मिलता है।





संतूर  एवं जल-तरंग:- पेट के समस्त रोग,जिगर के रोग,अल्सर,गैस कब्ज़ की समस्याएँ,अमाशय-पित्ताशय अदि के रोगों में संतूर वादन या जल-तरंग के श्रवण से रोगी की स्थिति में सुधार हो सकता है।


पखावज एवं मृदंग:- ह्रदय रोगों,फेफड़ों के रोगों एवं ह्रदय की दुर्बलता,असामान्य धड़कन,छाती में भारीपन,कन्धों का दर्द एवं अकड़न में पखावज एवं मृदंग की लय-युक्त थाप के श्रवण से लाभ प्राप्त होता है।


बांसुरी:- गले के समस्त रोग,थाइरोइड,कान के रोग,श्वशन-तंत्र के रोग आदि में बांसुरी वादन का नियमित श्रवण करने से उपचार में सहायता प्राप्त होती है।



ॐ का नाद:- आधुनिक जीवन का सबसे भयानक रोग और अन्य शारीरिक रोगों की जड़ तनाव है। मानव शरीर में सबसे घातक प्रभाव तनाव व चिंता से ही होता है,इस स्थिति में ॐ  के नाद या उच्चारण का नियमित श्रवण करने से अत्यधिक लाभ होता है। समस्त मस्तिष्क सम्बंधित रोगों के लिए भी यह लाभकारी है।

श्रवण के लिए उपयुक्त समय :- यदि आप उपरोक्त उपचार पद्धति का पूर्ण लाभ लेना चाहते हैं तो ध्यान रखे की इसका सर्वाधिक उपयुक्त समय है प्रातः ब्रम्ह मुहूर्त की बेला या रात्रि शयन पूर्व - अधिक लाभ हेतु ब्रम्ह मुहूर्त की बेला को चुने तो श्रेष्ठ है क्योंकि इस समय वातावरण में शांति,आध्यात्मिक भाव,एकाग्रता आदि का समन्वय होता है अतः लाभ प्राप्त होता है।
स्थिति:- इसके लिए आप ध्यान-मुद्रा में सिद्धासन में बैठ सकते हैं , भूमि पर बैठने में परेशानी हो तो कुर्सी या सोफे इत्यादि पर भी बैठ सकते हैं शरीर की मुद्रा आरामदायक स्थिति में होनी चाहिये। यदि रोगी की अवस्था अधिक ख़राब है तो शय्या पर लेटकर शवासन की मुद्रा में भी श्रवण किया जा सकता है।
श्रवण की लिए मध्यम धीमा स्वर चुने श्वास गहरी एवं धीमी गति से लें ध्यान को एकाग्र करें धीरे-धीरे अपने ध्यान को पीड़ित अंगों पर ले जाये,४० मिनिट से १ घंटे तक श्रवण किया जा सकता है। इस उपचार पद्धति में शीघ्र लाभ की कामना ना रखें,नियमित रूप से श्रवण करने पर धीरे-धीरे एवं स्थायी उपचार होता है।






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