एक अत्यंत पुरानी एवं सच्ची कहावत है कि जो जैसा बीज बोता
है, वह वैसा ही फल पाता है आज के अत्यंत व्यस्त एवं भाग-दौड़ भरे इस जीवन में
माता-पिता के पास अपनी संतान के लिए समय नहीं है तथा एकल परिवार के चलन के कारण जो
संस्कार हमारी आने वाली पीढ़ी को मिलने चाहिए वे उन्हें नहीं मिल रहे हैं जिसके
फलस्वरूप दिनों-दिन समाज में नैतिकता का पतन होता जा रहा है, अगर आप अपनी संतान तथा आने वाली पीढ़ियों
को संस्कारवान बनाना चाहते हैं तो कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर एक संस्कारित
समाज की आधारशिला रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति में बच्चों के सार्थक एवं
प्यारे नाम रखने की प्रथा रही है जैसे देवांश, मुदित, धर्मम, श्रुति, दिव्य आदि, पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण में अपने
बच्चों के नाम हनी, प्रिंसी, चेल्सी, जोनी आदि निरर्थक नाम रखकर इस प्रथा को
बिगाड़े नहीं।
बच्चों में ऐसी आदतों का विकास करें कि वे प्रातः हँसते हुए
उठे ना कि रोते हुए।
बच्चों में भय या लोभ पैदा करके उन्हें अनुशासित बनाने का
प्रयास ना करें।
बच्चों के सामने अपशब्द, गालियाँ, गंदे मजाक एवं अश्लील चुटकुले आदि ना
बोलें।
यदि आप चाहते हैं कि आपकी संतान आपका सम्मान करे तो अपना
जीवन व्यसनमुक्त बनायें, विषय वासना को नियंत्रण में रखें, ज्यादा बोलना, बार-बार खाना जैसी आदतों से दूर रहें, ध्यान रहे व्यसनी, विकारी, बातूनी व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता
है।
बच्चों को “तू” से संबोधित ना करें “तुम” कहें “आप” कहना तो और भी अच्छा है जिससे बच्चे भी
सभ्य भाषा का प्रयोग करना सीखेंगे।
प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा बच्चे के साथ व्यतीत करें उसकी
बात को ध्यान से सुनें बच्चों के सामने कभी भी किसी धर्म की निंदा ना
करें या उसका मजाक ना उड़ायें, बच्चों को अच्छी किताबें पढने की आदत
डालें।
आज की अंग्रेजी शिक्षा के ज़माने में बच्चों को अपनी मातृ-भाषा बोलना, लिखना एवं पढना अवश्य सिखाएं।
बच्चों को निश्चित समय पर भोजन देना , शयन करवाना , प्रातः
जगाना तथा समस्त कार्य करने की आदत डलवायें।
बच्चों को डरावनी कहानियाँ ना सुनाएँ ना ही उनमे भय पैदा
करें और न ही उनको नीचा दिखाएँ या अपमानित करें, गलती होने पर भूल हो गयी क्षमा
करें बोलने की आदत डालें।
बच्चों को आप सभी सुख-सुविधाएँ देते हैं किंतु यदि आप
उन्हें सुखदाता,-संस्कार-सम्पन्न बनाना चाहते हैं तो उन्हें समय दें, अपने
धर्म एवं संस्कृति का ज्ञान दें तथा भरपूर आत्मीयता प्रदान करें।
जो कार्य आप अपने माता-पिता तथा बुजुर्गों के सामने नहीं
करते हैं उन्हें अपनी संतान के सामने कदापि ना करें।
अपनी संतान से आप जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा नहीं रखते
हैं वैसा व्यवहार अपने माता-पिता, गुरु एवं बुजुर्गों से कभी भी ना करें। इस बात
का सदैव ध्यान रखें कि जैसी अपेक्षा आप अपनी संतान से रखते हैं ठीक वैसी ही आपके
अभिभावक आपसे रखते हैं।
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