मंगलवार, 3 जनवरी 2017

रुद्राक्ष Rudraksha रूद्र (महादेव) के अश्रु Rudra's (Shiva's) teardrops




रुद्राक्ष का महत्व एवं इसे धारण करने के लाभ 






रुद्राक्ष क्या है ? रुद्राक्ष को भगवान् शिव के अश्रुओं से उत्पन्न फल माना जाता है

शिव महापुराण के अनुसार जब दक्ष प्रजापति के यज्ञ में भगवती सती ने भगवान् सदाशिव के अपमान के कारण अग्नि में प्रवेश किया, तब भगवान् ने भगवती सती की देह को काँधे पर उठाकर महातांडव किया था, जिसके कारण सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया था, भगवान् शिव के क्रोध से सारी सृष्टि काँप उठी थी, ऐसे विकट समय में ब्रह्माजी सहित सभी देवगण भगवान् विष्णु की शरण में गए, विष्णुजी ने अपने सुदर्शन चक्र से भगवती सती की देह पर प्रहार किया और उस प्रहार के फलस्वरूप भगवती की देह के 52 टुकड़े होकर पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों पर गिरे जो आज 52 शक्तिपीठों के रूप में पूजे जाते हैं। इसी समय भगवान् शिव के नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी, जो पृथ्वी पर कुछ बूंदों के रूप में जहाँ भी गिरी वहाँ रुद्राक्ष के वृक्ष उग आये, अतः रुद्राक्ष को साक्षात् शिवस्वरूप माना जाता है।  

रुद्राक्ष का महत्व : सनातन हिन्दू धर्म में रुद्राक्ष का अत्यधिक महत्व है, सभी साधु-सन्यासी रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं एवं इससे मन्त्र जाप भी करते हैं। ऐसी मान्यता हैं कि रुद्राक्ष के मूल भाग में ब्रह्मा, मध्य भाग में विष्णु तथा इसके मुख में भगवान् रूद्र अर्थात शिव का निवास होता है, तथा इसके सारे बिंदुओं में सभी देवताओं का निवास माना गया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो यह एक्यूप्रेशर की पद्धत्ति से कार्य करता है, इसे धारण करने से शरीर का रक्त-संचार सुचारू रूप से संचालित होता है एवं इसके चुम्बकीय क्षेत्र से शरीर को ऊर्जा मिलती है। 

रुद्राक्ष के विभिन्न प्रकार एवं लाभ : हिन्दू धर्मावलम्बियों में जो शिव उपासक हैं वे तो भली-भाँति इसके लाभों से परिचित हैं इसके अलावा ज्योतिष विज्ञान में विभिन्न राशियों के अनुसार भिन्न-भिन्न रुद्राक्ष धारण करने से बहुत लाभ होता है, इसके विभिन्न प्रकार और उनसे लाभ निम्नानुसार हैं। 

एक मुखी रुद्राक्ष : यह एक दुर्लभ वस्तु है, इसके दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के पाप क्षीण हो जाते हैं। इसे धारण करने वाले व्यक्ति को ब्रह्म हत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिल जाती है। 

दो मुखी रुद्राक्ष : यह भी अत्यंत दुर्लभ किस्म है। इसे शिव और शक्ति का दूसरा रूप माना गया है। इसे जगत का कारण बीज माना जाता है। इससे गोवध जैसे पाप भी क्षीण हो जाते हैं। यह केवल नेपाल में ही पाया जाता है।

तीन मुखी रुद्राक्ष : इसे सत्व, रज एवं तमोगुण का स्वरुप माना जाता है, इसमें त्रिदेवों का शक्तिपुंज वास करता है ऐसा माना गया है कि इसे धारण करने वाला त्रिकालदर्शी हो जाता है। 

चार मुखी रुद्राक्ष : इसे ब्रह्माजी का दूसरा रूप माना गया है इसे धारण करने से मनुष्य की रचना शक्ति का विकास होता है तथा हत्या जैसे पाप भी क्षीण हो जाते हैं। 

पांच मुखी रुद्राक्ष : इसे भी ब्रह्म स्वरुप माना गया है, इसे धारण करने से मानसिक शांति मिलती है, सभी प्रकार के पापों का शमन करने वाला है यह रुद्राक्ष। 

छः मुखी रुद्राक्ष : इसे कार्तिकेय का स्वरुप माना गया है, इसे धारण करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग, ह्रदय रोग तथा नेत्रविकार दूर होते हैं। 

सात मुखी रुद्राक्ष : इसे सात आवरणों का स्वरुप माना गया है, गृहस्थों के लिए यह अतिउत्तम है, यह स्त्री को पतिसुख तथा पुरुषों को पत्नीसुख देने वाला है। 

आठ मुखी रुद्राक्ष : यह पञ्चमहाभूतों के समन्वय तथा सूर्य एवं चंद्र का प्रतिनिधि है, इसे धारण करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं तथा सभी कष्टों का निवारण होता है।

नौ मुखी रुद्राक्ष : साक्षात् शक्तिस्वरूप है यह रुद्राक्ष, इसे धारण करने वाला व्यक्ति साधक हो जाता है, साक्षात् नवनाथ स्वरुप हो जाता है। 

दस मुखी रुद्राक्ष : दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने से कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों से किये गए समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं यह रुद्राक्ष दशावतार का प्रतीक माना गया है। इसके धारक को प्रसिद्धि, सम्मान, धन सभी की प्राप्ति होती है। यह रुद्राक्ष राजनेताओं एवं कलाकारों के लिए अधिक उपयुक्त है।

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष : इस  रुद्राक्ष को एकादश रूद्र के स्वरुप माना गया है। ऐसा कहा जाता है, कि यदि श्रद्धा एवं विश्वास के साथ इसे धारण किया जाये तो बाँझ स्त्री भी गर्भवती हो जाती है, सारे कष्टों का निवारण करने वाला है यह रुद्राक्ष।

बारह मुखी रुद्राक्ष : इसे साक्षात् सूर्य का रूप माना जाता है, बारह आदित्यों की शोभा तथा साक्षात् बारह ज्योतिर्लिंग स्वरूपों का प्रतीक माना जाता है, इसके धारक पर भगवान् शिव की विशेष कृपा होती है। सभी प्रकार के मानसिक तथा शारीरिक कष्टों का निवारक होता है यह रुद्राक्ष।

तेरह मुखी रुद्राक्ष : इसे भगवान् विश्वेश्वर स्वरुप माना गया है, जो कि भगवान् शिव का ही एक रूप है। कुछ विद्वानों द्वारा इसे देवराज इंद्र का भी स्वरुप माना गया है। इसको धारण करने से सभी मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। पुराणों में इसे महाप्रतापी तथा तेजस्वी माना गया है।

चौदह मुखी रुद्राक्ष : इस रुद्राक्ष को भुवनेश्वर स्वरुप माना गया है, भगवान् भुवनेश्वर का निवास स्थल सूर्यलोक होता है। यह रुद्राक्ष चौदह मनु, चौदह लोक तथा चौदह इंद्र स्वरुप भी माना गया है। इसे केवल गले में ही धारण किया जा सकता है। इससे समस्त शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं पारिवारिक कष्टों का निवारण होता है।

पंद्रह मुखी रुद्राक्ष : इसे पशुपतिनाथ का स्वरूप माना जाता है। यह रुद्राक्ष स्वास्थ्य, धन, शक्ति, ऊर्जा, समृद्धि, आत्मा के उन्नयन और आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि करता है। सच्चा सुख और मन की शांति प्रदान करता है।  उचित मार्ग दिखाता है तथा सही रास्ते पर लेकर हमें आगे बढ़ता है। यह रूद्राक्ष भगवान पशुपतिनाथ का प्रतीक तथा राहु द्वारा शासित है। पंद्रह मुखी रूद्राक्ष को पहनने से धन का अभाव नही रहता है।  मोक्ष को प्राप्त करने में तथा उच्च उर्जा शक्तियों की वृद्धि में सहायक होता है। 

सोलह मुखी रुद्राक्ष :इस रुद्राक्ष को भगवान विष्णु एवं भगवान शिव का रुप माना जाता है
सोलह मुखी रुद्राक्ष, सोलह कलाओं एवं सिद्धियों का प्रतीक है। इसे पहनने वाले को सोलह सिद्धियों का ज्ञान प्राप्त होता है। सोलह मुखी रुद्राक्ष विष्णु और शिव का संयुक्त रूप है और विजय प्राप्त होने का प्रतिनिधित्व करता है। यह रूद्राक्ष "केतु" द्वारा शासित माना गया है तथा केतु के बुरे प्रभावों से बचाता है। यह रूद्राक्ष की दुर्लभ किस्मों में से एक है।

सत्रह मुखी रुद्राक्ष : यह रूद्राक्ष को सीता जी एवं राम जी का प्रतीक माना गया है। यह रुद्राक्ष राजयोग का सुख प्रदान करता है सुख एवं समृद्धि दायक होता है। यह रुद्राक्ष राम सीता जी के संयुक्त बलों का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक दुर्लभ रूद्राक्ष है, यह रुद्राक्ष भगवान विश्वकर्मा का भी एक प्रतीक है। इस रूद्राक्ष के पहनने से सफलता, स्मृति ज्ञान, कुंडलिनी जागरण और तथा धन धान्य की वृद्धि होती है। सत्रह मुखी रुद्राक्ष भौतिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से उपयोगी है

अठारह मुखी रूद्राक्ष : यह 18 वनस्पतियों  अर्थात औषधियों  का प्रतीक माना गया है। अठारह मुखी रूद्राक्ष एक दुर्लभ रूद्राक्ष है और माँ पृथ्वी के साथ जुड़ा हुआ है। यह भगवान शिव के भैरव रूप का प्रतिनिधित्व करता है। भैरव भगवान शिव का एक भयानक और क्रोधित रुप है। अत: इस रूद्राक्ष के स्वामी व्यक्ति को सभी भयानक प्रभावों से बचाते हैं। इसे धारण करने वाले के शरीर में किसी भी प्रकार की कोई भी बीमारी नहीं हो पाती तथा वह हमेशा स्वस्थ्य रहकर सुखी जीवन व्यतीत करता है

उन्नीस मुखी रुद्राक्ष : इसे भगवान शिव-पार्वती तथा गणेश जी का प्रतीक माना गया है। यह रुद्राक्ष प्रभु नारायण का प्रतिनिधित्व करता है। जो भी इसे धारण करता है वह सभी सांसारिक सुखों को प्राप्त करता है तथा  जीवन में कोई कमी नहीं रहती। वित्तीय प्रगति के लिए यह उन्नीस मुखी रूद्राक्ष सबसे अच्छा माना गया है। उन्नीस मुखी रुद्राक्ष आर्थिक समृद्धि के लिए पहना जाता है। इसे धारण करने से भगवान नारायण और लक्ष्मी मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे धारण करने पर त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

बीस मुखी रुद्राक्ष : इस रुद्राक्ष के सत्तारुढ़ देवता भगवान ब्रह्मा है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों के रूप में इस रुद्राक्ष में आठ दिक्पालों, आठ दिशाओं के परमेश्वर और नौ ग्रह भी निहित हैं। बीस मुखी रूद्राक्ष को धारण करने वाला सत्य का आचरण करता है, ज्ञान एवं मानसिक शांति को पाता है। यह रुद्राक्ष भगवान शिव के प्रति की गई भक्ति को उन तक पहुँचाने में सक्षम होता है। भगवान शिव उन्हें आशीर्वाद देते हैं और अपने पापों का अंत करके व्यक्ति को मोक्ष (मुक्ति) प्रदान करते हैं

इक्कीस मुखी रूद्राक्ष : यह भगवान कुबेर को दर्शाता है जो धन-संपदा के स्वामी हैं, इसके अतिरिक्त यह रुद्राक्ष  भगवान शिव का प्रतिनिधित्व भी करता है. इक्कीस मुखी रुद्राक्ष सभी रुद्राक्षों में एक बेहतरीन रुद्राक्ष है. भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य सभी देवी देवता इस रूद्राक्ष में निवास करते हैं। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, जब इक्कीस मुखी रुद्राक्ष को पूजा के स्थान में रखा गया तब समस्त देवताओं ने स्वयं को इसके चारों ओर स्थापित किया।

गर्भ गौरी रूद्राक्ष : यह माता गौरी और उनके पुत्र भगवान गणेश जी का स्वरूप माना जाता है। यह गर्भ गौरी रुद्राक्ष गौरी शंकर के समान ही दिखाई पड़ता है। जहां गौरी शंकर रुद्राक्ष में रुद्राक्ष का आकार एक समान होता है वहीं गर्भ गौरी रुद्राक्ष में एक रुद्राक्ष अन्य की तुलना में आकार में छोटा होता है। इस रुद्राक्ष में बडा़ रुद्राक्ष देवी पार्वती को दर्शाता है तथा छोटा रुद्राक्ष पुत्र रुप में भगवान गणेश को दर्शाता है। गर्भ गौरी रुद्राक्ष उन महिलाओं के लिए बहुत लाभदायक हैं जो मातृसुख की कामना करती हैं और जिन्हें गर्भपात होने का भय सताता है।

त्रिजुटी रुद्राक्ष : इसे गौरी पाठ रुद्राक्ष भी कहते हैं। यह रुद्राक्ष तीन रुद्राक्षों का जोड़ होता है जो ब्रह्मा विष्णु और महेश के स्वरूप को अभिव्यक्त करते हैं। यह रुद्राक्ष त्रिमूर्ति का स्वरूप माना जाता है । तो कुछ इस रुद्राक्ष को भगवान शिव के परिवार रुप में परिभाषित करते हैं जिसमें शिव, गणेश और माता पार्वती को उल्लेखित किया जाता है। यह एक बहुत दुर्लभ रुद्राक्ष है जो आसानी से प्राप्त नहीं होता। इस रुद्राक्ष में एक, चौदह और गौरी शंकर रुद्राक्ष के गुण समाए होते हैं। इसे धारण करने से त्रिदेवों कि कृपा प्राप्त होती है।

गणेश रुद्राक्ष : यह भगवान श्री गणेश जी का प्रतिनिधित्व करता है। इस रूद्राक्ष की आकृति भी गणेश जी के जैसी प्रतीत होती है। इस लिए इस रुद्राक्ष पर सुंड के समान एक उभार भी होता है, इसे धारण करने से समस्त विघ्नों का नाश होता है तथा धन संपत्ति की प्राप्ति होती है। गणेश रुद्राक्ष को धारण करने से भगवान गणपति जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इनके सानिध्य को पाकर व्यक्ति अपनी सभी समस्याओं से मुक्त हो जाता है और सभी प्रकार के सुखों को भोगता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है।बुद्धि ज्ञान को बढाने वाला यह रुद्राक्ष अच्छी कार्य क्षमता प्रदान करता है। इस रुद्राक्ष को पूजा स्थान में रखकर नियमित रुप से इसकी पूजा अर्चना करने से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं तथा अनेक मार्ग स्वत: ही खुल जाते हैं। यह भाग्य बढ़ाता है और सभी प्रयासों में सफलता मिलती है।

गौरीशंकर रुद्राक्ष : आपस में जुड़े दो रुद्राक्षों को पुराणों में गौरीशंकर रुद्राक्ष की संज्ञा दी गयी है। यह अत्यंत दुर्लभ होता है तथा साक्षात् शिव एवं शक्ति का स्वरुप माना गया है। इसके समस्त फल एक मुखी रुद्राक्ष के समान हैं, इसे घर के पूजा स्थल में रखना अत्यंत ही शुभदायी है।

सावर रुद्राक्ष : यह एक अत्यंत दुर्लभ किस्म है, यह मानव के आध्यात्मिक एवं सांसारिक उत्थान के लिए अति उपयोगी है, यह मानव के भीतर की चेतना और आध्यात्मिक विकास के लिए प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक अनमोल उपहार है

रुद्राक्ष को धारण करने का विधान : धारण करने से पूर्व सभी प्रकार के रुद्राक्ष को शिवलिंग में अर्पित कर, शुद्धतापूर्वक भगवान् भोलेनाथ की पूजा, अर्चना एवं अभिषेक के बाद पहनने का विधान है, वार का विशेष ध्यान रखें, सोमवार का दिन इस कार्य के लिए अत्यंत शुभ होता है।


असली रुद्राक्ष की पहचान : रुद्राक्ष एक दुर्लभ और पवित्र वस्तु है अतः इसकी नक़ल भी भारी मात्रा में लोगों को भ्रमित कर दे दी जाती है। रुद्राक्ष का स्वयं का एक चुम्बकीय क्षेत्र होता है जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर स्वतः ही घूमती रहती है ठीक वैसे ही रुद्राक्ष भी स्वयं ही घूमता है, इसका परीक्षण (यदि रुद्राक्ष गोलाकार स्वरुप में है तो) सरलतापूर्वक किया जा सकता है। अपने दोनों हाथों के अंगूठों के नाखूनों के मध्य रुद्राक्ष को रखें, हल्का स्पर्श रखने पर यह आपको स्वतः ही अत्यंत धीमी गति से घूमता दिखाई देगा।





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