हिन्दू धर्म में विवाह के समय पवित्र गठबंधन का महत्त्व एवं
विधान
हिन्दू संस्कृति के अनुसार विवाह –
संस्कार मनुष्य जीवन में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है । यह
संस्कार दो आत्माओं को जीवन पर्यंत एक-दूजे के प्रति समर्पित रहकर जीवन यापन करने
हेतु सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप जीवन को सरल, सहज एवं सुन्दर बनाने के लिए किया
जाता है ।
पाणिग्रहण या हस्तमिलाप के
साथ-साथ वर के कांधे पर डाले गए श्वेत उत्तरीय तथा वधु की लाल चुनरी के पल्लू में
परस्पर गठबंधन किया जाता है, इसमें पांच वस्तुओं को गांठ के साथ बांधा जाता है जिनका
अपना महत्त्व है वे वस्तुएं निमानानुसार हैं :-
सिक्का : यह प्रतीक
है धन का , अर्थात पति द्वारा अर्जित आय पर दोनों का समान अधिकार होगा, खर्च करने
में दोनों की आपसी सहमती होगी ।
पुष्प : यह प्रतीक है, प्रसन्नता एवं शुभकामनाओं का । वर-वधु का सम्पूर्ण जीवन प्रसन्नतापूर्वक यापन
हो, वे एक-दूजे के सुख-दुःख में साथ दें तथा परस्पर प्रेम एवं सम्मान की भावना
रखें ।
हल्दी : यह आरोग्य एवं गुरु का प्रतीक है, इससे वर-वधु
को यह प्रेरणा मिलती है कि एक-दूजे के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को सुविकसित करने
के लिए प्रयत्नशील रहें ।
दूर्वा : जिस प्रकार शुष्क दूर्वा पर जल का छिड़काव करने
से वह पुनः हरी-भरी हो जाती है ठीक उसी प्रकार वर-वधु का आपसी प्रेम कभी नष्ट ना
हो, दोनों के मन में परस्पर प्रेम व आत्मीयता सदैव विद्यमान रहे ।
अक्षत (चावल) : पति पालक बनकर तथा वधु अन्नपूर्णा बनकर परिवार
तथा समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को निभाए तथा स्वयं परस्पर मिलजुल कर रहे ।
इन
शुभ भावनाओं के साथ यह गठबंधन किया जाता है ।
हिन्दू धर्मं में महिलाएं इस गठबंधन के वस्त्रों को जीवन पर्यंत संभालकर रखती हैं
तथा सभी शुभ कर्मों यथा हवन, यज्ञ, पर्व-पूजन इत्यादि में इनका प्रयोग अवश्य करती
हैं । ऐसी महान है हमारी सनातन हिन्दू संस्कृति ।
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