सोमवार, 27 मार्च 2017

अपनी संतान से कैसा व्यवहार करना उचित है ? ; How is it appropriate to treat your child ?

 
        
                   
                           एक अत्यंत पुरानी एवं सच्ची कहावत है कि जो जैसा बीज बोता है, वह वैसा ही फल पाता है आज के अत्यंत व्यस्त एवं भाग-दौड़ भरे इस जीवन में माता-पिता के पास अपनी संतान के लिए समय नहीं है तथा एकल परिवार के चलन के कारण जो संस्कार हमारी आने वाली पीढ़ी को मिलने चाहिए वे उन्हें नहीं मिल रहे हैं जिसके फलस्वरूप दिनों-दिन समाज में नैतिकता का पतन होता जा रहा है, अगर आप अपनी संतान तथा आने वाली पीढ़ियों को संस्कारवान बनाना चाहते हैं तो कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर एक संस्कारित समाज की आधारशिला रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 



हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति में बच्चों के सार्थक एवं प्यारे नाम रखने की प्रथा रही है जैसे देवांश, मुदित, धर्मम, श्रुति, दिव्य आदि, पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण में अपने बच्चों के नाम हनी, प्रिंसी, चेल्सी, जोनी आदि निरर्थक नाम रखकर इस प्रथा को बिगाड़े नहीं। 




बच्चों में ऐसी आदतों का विकास करें कि वे प्रातः हँसते हुए उठे ना कि रोते हुए। 


बच्चों में भय या लोभ पैदा करके उन्हें अनुशासित बनाने का प्रयास ना करें। 

बच्चों के सामने अपशब्द, गालियाँ, गंदे मजाक एवं अश्लील चुटकुले आदि ना बोलें। 

यदि आप चाहते हैं कि आपकी संतान आपका सम्मान करे तो अपना जीवन व्यसनमुक्त बनायें, विषय वासना को नियंत्रण में रखें, ज्यादा बोलना, बार-बार खाना जैसी आदतों से दूर रहें, ध्यान रहे व्यसनी, विकारी, बातूनी व्यक्ति तिरस्कार का पात्र बनता है। 

बच्चों को “तू” से संबोधित ना करें “तुम” कहें “आप” कहना तो और भी अच्छा है जिससे बच्चे भी सभ्य भाषा का प्रयोग करना सीखेंगे। 



प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा बच्चे के साथ व्यतीत करें उसकी बात को ध्यान से सुनें बच्चों के सामने कभी भी किसी धर्म की निंदा ना करें या उसका मजाक ना उड़ायें, बच्चों को अच्छी किताबें पढने की आदत डालें। 

आज की अंग्रेजी शिक्षा के ज़माने में बच्चों को अपनी मातृ-भाषा बोलना, लिखना एवं पढना अवश्य सिखाएं। 


बच्चों को निश्चित समय पर भोजन देना , शयन करवाना , प्रातः जगाना तथा समस्त कार्य करने की आदत डलवायें।

बच्चों को डरावनी कहानियाँ ना सुनाएँ ना ही उनमे भय पैदा करें और न ही उनको नीचा दिखाएँ या अपमानित करें, गलती होने पर भूल हो गयी क्षमा करें बोलने की आदत डालें। 

बच्चों को आप सभी सुख-सुविधाएँ देते हैं किंतु यदि आप उन्हें सुखदाता,-संस्कार-सम्पन्न बनाना चाहते हैं तो उन्हें समय दें, अपने धर्म एवं संस्कृति का ज्ञान दें तथा भरपूर आत्मीयता प्रदान करें।

जो कार्य आप अपने माता-पिता तथा बुजुर्गों के सामने नहीं करते हैं उन्हें अपनी संतान के सामने कदापि ना करें।

 अपनी संतान से आप जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा नहीं रखते हैं वैसा व्यवहार अपने माता-पिता, गुरु एवं बुजुर्गों से कभी भी ना करें। इस बात का सदैव ध्यान रखें कि जैसी अपेक्षा आप अपनी संतान से रखते हैं ठीक वैसी ही आपके अभिभावक आपसे रखते हैं। 

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

जल ही जीवन है; water is life

हमारे शास्त्रों में लिखा है – “अजीर्णे भेषजं वारि  जीर्णे वारि बलप्रदम“ अर्थात् अजीर्ण (अपच) में जल दवा का काम करता है और भोजन पचने के बाद पानी पीने से शरीर के बल में वृद्धि होती है, बहुत से रोग ऐसे हैं जिन्हें जल के माध्यम से ठीक किया जा सकता है । ठण्डे एवं गर्म जल के अपने-अपने औषधीय गुण हैं कई रोगों में ठंडा एवं कई रोगों में गर्म पानी दवा का कार्य करता है ।

ठण्डे पानी के लाभ
जब कोई अग्नि से झुलस या जल जाये तो तुरंत प्रभावित अंग या हिस्से को कम से कम एक घंटा ठण्डे पानी में डूबाकर रखें इससे उसे परम शांति का अनुभव होगा, जलन दूर होगी तथा घाव या फफोला भी नहीं होगा, यदि पूरा शरीर झुलस जाये तो एक बड़े से पानी के हौज या तालाब में डुबो दें केवल साँस लेने के लिए नाक को पानी से बाहर रखें ध्यान रहे की जला झुलसा अंग पानी में लगातार एक से दो घंटे डूबा रहे । कभी भी जलने पर प्रभावित अंग पर पानी का छिड़काव न करें इससे घाव या फफोले पड़ जाते हैं पानी में डूबाकर रखना ही कारगर इलाज है, यदि अस्पताल ले जाने के चक्कर रहेंगे तो व्यर्थ समय नष्ट होगा फफोले पड़ने से घाव में इन्फेक्शन का खतरा हो जायेगा अतः पहले पानी से ही इलाज करें तत्पश्चात अस्पताल ले जाएँ ।
बहुत से लोगों को ऐसा भ्रम होता है कि जले अंगों को पानी में डूबाने से घाव बढ़ेंगे परन्तु सच तो यह है कि उनपर पानी का छिड़काव करने से ऐसा होता है जब आप पीड़ित के प्रभावित अंगों को लगातार एक दो घंटे पानी में डूबाकर रखेंगे तब आपको ठण्डे पानी का असली चमत्कार दिखाई देगा ।


इसी प्रकार मोच या चोट वाले स्थान पर भी अत्यधिक ठण्डे पानी की पट्टी या बर्फ लगा सकते हैं इससे न तो सूजन आयेगी और न ही दर्द बढेगा यदि गर्म पानी की पट्टी लगायेंगे या सेंक करेंगे तो सूजन भी आ सकती है एवं दर्द भी बढ़ सकता है, यदि चोट लगने या कटने से खून आ जाये तो वहाँ एकदम ठण्डे पानी की पट्टी या बर्फ लगा दें आराम मिलेगा इसी प्रकार इंजेक्शन लगाने के बाद उस स्थान पर सूजन आ जाये या दर्द बढे तो ठण्डे पानी की पट्टी या बर्फ लगायें ।

गर्म पानी के लाभ

वातरोगों, जोड़ों के दर्द, कमर के दर्द, घुटने के दर्द, गठिया, कंधे की जकड़न आदि में गर्म पानी के सेंक या भाप लेने के आराम मिलता है ।यदि रात में नींद ना आती हो तो सोने से पहले दोनों पैरों को घुटने तक सहने योग्य गर्म पानी से भरी बाल्टी या टब में पंद्रह मिनिट तक डुबाकर रखें इसके बाद पैरों को बाहर निकालकर पोंछ लें और सो जाएँ नींद आ जाएगी । यह भी ध्यान रहे कि जब गर्म पानी में पैर डूबायें  तब सिर पर ठण्डे पानी में भिगोकर निचोड़ा हुआ तौलिया अवश्य रखें ।



रोज सुबह उठकर विशेषकर ठण्ड के दिनों में गर्म पानी का सेवन अवश्य करें इसे शरीर की अनावश्यक चर्बी दूर होती है तथा कफ़ का प्रकोप भी कम होता है ।



आपने अस्पतालों और नर्सिंग होम में देखा होगा कि पतले दस्त या उल्टी-दस्त के रोगियों को सेलाइन का पानी (ड्रिप) चढाते हैं यह सेलाइन का पानी नमकीन पानी होता है इससे रोगी ठीक हो जाता है, इसी प्रकार बच्चों को पतले दस्त या डायरिया में जीवन रक्षक घोल (नमक-शक्कर का घोल) बनाकर देने से बच्चे ठीक हो जाते हैं, शरीर में पानी की कमी न हो इसलिए यह घोल दिया जाता है, पानी की कमी से मृत्यु तक हो सकती है यही कारण है कि रोगी के शरीर में पानी पँहुचाया जाता है चाहे मुख से या सेलाइन के माध्यम से...........ये हैं पानी के कुछ अद्भुत चमत्कार । 

शनिवार, 21 जनवरी 2017

हिंदी शिक्षाप्रद कहानी ; Hindi Moral Story कुसंगति का फल - Result of Bad Company








प्रतिदिन कुछ बगुले आकर एक किसान के खेत की फसल बर्बाद कर जाया करते थे । इसे देखकर किसान ने उन बगुलों पकड़ने के लिए खेत में जाल बिछाकर रख दिया । बाद में उसने जाकर देखा तो बहुत से बगुले उस जाल में फंसे हुए थे और उनके साथ एक सारस भी फंसा हुआ था । सारस ने किसान से खुद को आजाद करने की विनती की तथा कहा कि किसान भाई मैं बगुला नहीं हूँ तथा मैंने कभी भी तुम्हारी फसल को बर्बाद नहीं किया कृपा करके मुझे छोड़ दो, तुम विचार करके देखो की हमारी पक्षी प्रजाति में तुम्हे मुझ जैसा धर्मपरायण कोई दूसरा पक्षी नहीं मिलेगा, मैंने कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पंहुचाया है । इस पर किसान ने कहा सुनो सारस तुमने जो कुछ भी कहा वो सच होगा मुझे इसमें कोई संदेह नहीं किन्तु तुम मेरी फसल बर्बाद करने वाले इन बगुलों के साथ पकड़े गए हो, अतः तुम्हे भी इनके साथ सजा भोगनी ही होगी........ क्योंकि कुसंग का फल सदैव बुरा होता है ।


शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

कितना गुणकारी शहद ! benefits of honey!



प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में शहद का वर्णन एक ऐसी औषधि के रूप में है जो अन्य सभी औषधियों के साथ मिलकर उनके प्रभाव को शरीर के अनुकूल एवं लाभदायक बनाता है , दुसरे शब्दों में कहा जाये तो इसके बिना आयुर्वेदिक औषधोपचार अधूरा है । शहद में वे सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के विकास एवं पाचन क्रिया को सुचारू रखने के लिए आवश्यक हैं । आयुर्वेद में माँ के दूध के पश्चात् बच्चों के लिए शहद को ही सर्वाधिक पोषक बताया गया है । शहद में शरीर को दीर्घायु एवं स्वस्थ बनाये रखने की अद्भुत शक्ति है ।

शुद्ध शहद की पहचान : शहद एक प्रकृति प्रदत्त औषधि है जो मधुमक्खियों द्वारा विभिन्न पुष्पों के पराग-कणों एवं रस को एकत्रित कर निर्मित किया जाता है वे अपने छत्तों में इसका निर्माण करती हैं । इसमें कई तत्व विद्यमान होते हैं जिनमे ग्लूकोस एवं फ्रूक्टोज़ प्रमुख हैं । शुद्ध शहद पानी में अपने आप नहीं घुलता, यह इसकी एक सामान्य पहचान है, जो शहद जितना ज्यादा गाढ़ा होगा, उसमे नमी की जितनी कमी होगी वह शुद्धता की दृष्टि से उतना ही उत्तम माना जायेगा । शुद्ध शहद ठण्ड में जम जाता है और गर्मी में स्वतः ही पिघलने लगता है । ऐसे तो शहद के कई प्रकार हैं तथा क्षेत्र विशेष की वनस्पति, पुष्पों के विभिन्न प्रकार एवं भिन्न ऋतुओं में होने वाले वातावरण का प्रभाव भी इसकी किस्मों पर पड़ता है । हिमालय के तराई क्षेत्रों में पाया जाने वाला “कार्तिक-मधु” सर्वोत्तम माना जाता है एवं यह अत्यंत दुर्लभ है ।  इसके सेवन से गले में हलकी मिर्च सा स्वाद आता है, इसके आलावा फाल्गुन और चैत्र मास (मार्च-अप्रेल) में तैयार होने वाला सरसों के फूलों का शहद भी औषधीय गुणों से भरपूर होता है । वैशाख एवं ज्येष्ठ मास (मई-जून) में तैयार होने वाला शहद लाल-रंग का होता है और कम जमता है तथा इसके स्वाद में हल्का कडुवापन होता है अन्य शहद की अपेक्षा इसकी तासीर (प्रकृति) अधिक गर्म होती है । हमारे देश में शहद की कुछ ही किस्मे पाई जाती हैं किन्तु संयुक्त राज्य अमेरिका में इसकी लगभग 600 किस्में पाई जाती है वहाँ मधुमक्खी पालन एवं शहद उत्पादन एक वृहद् उद्योग है ।

भण्डारण एवं परिरक्षण : शहद को जिस समय छत्ते से निकला जाता है उस समय इसकी तासीर (प्रकृति) अधिक गर्म होती है तथा धीरे-धीरे इसका प्रभाव सामान्य होता है । शहद को छत्ते से निकालने के बाद इसमें मौजूद नमी को दूर करना चाहिए इसके लिए शहद को 7 तहों वाले महीन सूती वस्त्र से छानकर कांच के मर्तबान में भर देना चाहिए तथा उसके मुख को जालीदार कपड़े से बांधकर 3 दिनों तक धूप दिखानी चाहिए इससे उसमे मौजूद नमी खत्म हो जाती है तथा सूर्य किरणों के प्रभाव से बैक्टीरिया नष्ट होकर उसके औषधीय गुणों में वृद्धि होती है, शहद को कभी भी फ्रिज में नहीं रखना चाहिए तथा ना ही उसे सीधे अग्नि पर गर्म करना चाहिए । शहद को हमेशा ताज़ा ही उपयोग करना चाहिए क्योंकि पुराने शहद में औषधीय तत्व धीरे-धीरे कम होते जाते हैं ।

यहाँ हम शहद के सम्बन्ध में कुछ विशेष जानकारियाँ दे रहे हैं  जो इसके सामान्य उपयोग पर आधारित है तथा ज्ञानवर्धक हैं जिन्हें हमने विभिन्न स्रोतों से एकत्र किया है :-

शहद मुँह में रखते ही तत्काल घुलकर शरीर को त्वरित उर्जा प्रदान करता है जितनी आसानी तथा शीघ्रता से शहद पचता है उतना अन्य कोई पदार्थ नहीं । विभिन्न औषधियों के साथ अनुपान के रूप में शहद का प्रयोग करने से औषधि की शक्ति बढ़ जाती है।



बालकों हेतु शहद :



·      नवजात शिशु को जन्म के तत्काल बाद शहद चटाने से वह निरोगी होता है।
·     बच्चों को नौ माह की आयु तक शहद देने से उन्हें किसी प्रकार का रोग नहीं होता है, तथा उनको दांत निकलने पर होने वाली पीड़ा भी कम महसूस होती है।
·      छोटे बच्चों को सीमित मात्रा में शहद चटाने से उनके आहार की भी पूर्ति  होती है।
·   कमजोर लीवर (जिगर) वाले बच्चों को भोजन में शहद मिलकर देने से भोजन शीघ्र पचता है ।
·     बच्चों में प्रायः टॉन्सिल बढ़ने की शिकायत होती है ऐसे में सेब के रस में शहद मिलाकर देने से आराम मिलता है ।
·     पांच से बारह वर्ष की आयु तक के बच्चों को सर्दी- खाँसी में अदरक एवं तुलसी का रस समान मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम खाली पेट देने से अन्य किसी औषधि की आवश्यकता नहीं होती है ।
·     बच्चों को काली खाँसी या कुकुर खाँसी की बीमारी में भीगे बादाम को पीसकर शहद के साथ देने से शीघ्र लाभ मिलता है ।
·      बच्चों को ज्यादा हिचकियाँ आने पर शहद चटायें आराम मिलेगा ।


मोटापा दूर करने हेतु शहद :



·    प्रातः एवं सांय गर्म पानी में एक चम्मच शहद डालकर पीने से शरीर की अनावश्यक चर्बी, मोटापा एवं भारीपन दूर होता है, प्रातः शौच जाने के पूर्व इसका उपयोग किया जाना चाहिए।


अनिद्रा रोग हेतु शहद :



·      बैंगन के भर्ते में शहद मिलाकर खाने से अनिद्रा की शिकायत दूर होती है ।
·    नियमित रूप से रात्रि में शहद का सेवन किया जाये तो अनिद्रा के रोगियों को अच्छे  परिणाम मिलते हैं ।


माँसपेशियों की कमजोरी एवं थकान हेतु शहद :



·   अधिक थकान लगने पर शहद के साथ नींबू की शिकंजी बनाकर पीने से शरीर को तुरंत उर्जा मिलती है ।
·  शहद को संतरे के रस, दूध या केवड़े के रस में मिलाकर पीने से माँसपेशियों की कमजोरी दूर होती है एवं शरीर को नयी उर्जा का संचार होता  है ।
·    अनार के रस में शहद मिलाकर लेने से दिमागी कमजोरी, सुस्ती, निराशा एवं थकावट दूर होती है ।


बवासीर एवं कब्ज हेतु शहद :



·   बवासीर के रोगियों को नियमित रूप से त्रिफला का शहद का शहद के साथ सेवन करना चाहिए ।
·     नियमित रूप से शहद के सेवन से आंतों की सफाई होती है तथा शौच खुलकर होता है एवं कब्ज दूर होती है ।


फोड़े-फुंसी घाव एवं चर्म रोगों हेतु शहद :



·    फोड़े-फुंसियों पर शहद सीधे लगाने पर वह एंटीसेप्टिक का काम करता है तथा दाग-धब्बे भी दूर करता है ।
·      शहद का नियमित ठण्डे जल के साथ सेवन करने पर चर्म रोग दूर होते हैं ।
·      यदि किसी घाव से रक्त-स्त्राव बंद ना हो रहा हो तो उस पर शहद लगाने से तुरंत बंद हो जाता है, तथा इसका सेवन पुराने घावों को भी जल्दी भर देता है।


सर्दी-जुकाम, बुखार हेतु शहद :



·      साधारण सर्दी-जुकाम होने पर गर्म पानी में शहद लेने से उत्तम परिणाम मिलते हैं ।
·     अदरक एवं तुलसी का रस समभाग शहद में मिलाकर लेने से सर्दी-खाँसी में शीघ्र लाभ होता है ।
·   मलेरिया के बुखार में गर्म पानी के साथ दो चम्मच शहद लेने से खूब पसीना आकर बुखार उतर जाता है ।


जलने पर या बिच्छू के काटने पर शहद :



·    बिच्छू के काटे गए स्थान पर शहद, घी तथा चूना बराबर मात्रा में मिलाकर लगाने से जहर शीघ्र उतर जाता है ।
·   साधारण जलने, कटने या छिलने पर प्रभावित भाग में तुरंत शहद लगाने से आराम मिलता है ।


आँखों की कमजोरी या नेत्र ज्योति बढ़ाने हेतु शहद :

·    शहद की एक बूंद प्रतिदिन आँखों में डालने से नेत्र ज्योति में वृद्धि होती है तथा आँखों के विकार दूर होते हैं ।


चक्कर, सिरदर्द तथा वमन होने पर शहद :



·    ज्यादा चक्कर आने पर काली-मिर्च के पावडर के साथ शहद मिलकर सेवन करने से तथा ऊपर से शीतल जल पीने से तुरंत लाभ होता है ।
·      वमन (उल्टी) होने पर पुदीने के रस में समभाग  शहद मिलाकर पीने से लाभ होता है ।
·     आधे सिरदर्द (माईग्रेन) में कुनकुने जल में शहद मिलाकर पीने से लाभ मिलता है ।


प्रदर रोग हेतु शहद :

·    पके हुए केले के फल के साथ शहद मिलाकर खाने से महिलाओं को प्रदर रोग में शीघ्र लाभ होता है ।


पीलिया रोग हेतु शहद :



·     पीलिया के रोगी को पके हुए आम के रस में शहद मिलाकर देने से रोग दूर होता है ।


लकवा, पक्षघात रोग हेतु शहद :


·    लकवा या पक्षघात के रोगियों को शहद का नियमित सेवन करवाना चाहिए इस रोग के लिए शहद सर्वोत्तम औषधि है ।


विशेष : कल्प-मधुपर्क औषधि – एक निश्चित अनुपात में देसी गाय का शुद्ध घी, शुद्ध शहद एवं ताजा दही के मिश्रण को मधुपर्क की संज्ञा दी गयी है, यह अत्यंत बलिष्ठ, पवित्र एवं विशेष लाभकारी है, इसमें इतना ध्यान रखना है कि शहद एवं घी की मात्रा बराबर नहीं होनी चाहिए जितना घी लें उससे दोगुना शहद एवं चारगुना दही ।




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गुरुवार, 5 जनवरी 2017

अपने बच्चों के दाँतों की देखभाल कैसे करें ?


बच्चों के मुख में 20 दूध के दाँत होते हैं। जब पहला दाँत दिखे तभी से ही उनकी साफ़-सफाई का ध्यान रखना चाहिए। हर बार बच्चे को दूध पिलाने या कुछ खिलाने के बाद साफ़ गीले कपड़े से दाँतों को साफ़ करना चाहिए, जब और दाँत भी आ जाएँ तब मुलायम छोटे ब्रश से साफ़ करना चाहिए। शुरुआत में माता-पिता को अपने हाथों से बच्चे के दाँतों में ब्रश करवाना चाहिए। 

दूध के दाँतों का महत्व : दूध के दाँत भले ही बाद में गिर जाते हैं, परंतु इनका महत्व हमारे अपने दाँतों से कोई कम नहीं है -खाने में, साफ़ बोलने में (उच्चारण) और सुन्दर दिखने के अलावा इनका सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य है अपने दाँतों के लिए जगह बनाये रखना। इसलिए अगर कोई दूध का दाँत समय से पहले किसी कारणवश गिर जाता है तो आने वाले दाँत टेढ़े-मेढ़े आ सकते हैं। इसलिए दूध के दाँतों की देखभाल बहुत आवश्यक है। 


दूध के दाँतों में होने वाली कुछ मुख्य परेशानियाँ

1) दाँतों में कीड़े लगना : जो बच्चे दूध, जूस या कोई भी मीठे पदार्थ वाली बोतल मुँह में लेकर सोते हैं, उनके दाँतों में सड़न हो जाती है, इसलिए जैसे ही दूध या जूस ख़त्म हो तुरंत बोतल हटा लेनी चाहिए, यदि बच्चे के दाँतों में सड़न हो रही हो तो दाँतों में बने छेद डॉक्टर से भरवा लें। 

2) चोट लगने से दाँतों का टूटना : टूटे हुए दाँत को ठण्डे दूध या पानी में डालकर अपने डॉक्टर (डेण्टल सर्जन) के पास जल्द से जल्द ले जाएँ (आधे घण्टे के भीतर), जो दाँत जड़ से निकल जाये उसे फिर से बच्चे के मुँह में दोबारा बैठाया जा सकता है। 


बच्चों को ब्रश करना कैसे सिखायें : आम तौर पर माता-पिता के लिए यह समस्या होती है कि बच्चे को ब्रश करना कैसे सिखायें ? दो-तीन वर्ष का बच्चा आपको देखकर दातौन या ब्रश करना सीखता है, पहले उसे स्वयं ब्रश करने दें फिर एक बार आप उसके दाँतों को ब्रश से साफ़ करें।  छः वर्ष तक के बच्चे को माता-पिता अपने सामने ब्रश करवायें, जिससे दाँत भी ठीक से साफ़ हों तथा बच्चा टूथपेस्ट ना निगले तथा उसे ठीक प्रकार से थूक दे। बच्चे को ठीक से ब्रश करना सिखायें, ब्रश के बाद कुल्ला अवश्य करायें तथा जीभ भी साफ़ करवायें।
बच्चे को दिन में दो बार ब्रश या मंजन की आदत अवश्य डलवायें - सुबह नाश्ते के पूर्व तथा रात को भोजन के बाद।  


दाँतों की सड़न को कैसे रोकें : 
1) दिन में दो बार ब्रश या मंजन की आदत अवश्य डलवायें
2) खाने में स्वस्थ यानि लाभदायक खाना दें, चीनी एवं कार्बोहाइड्रेट की वस्तुयें कम करें और बच्चे की नाराज़गी दूर करने या खुश करने के लिए टॉफी देने की आदत कभी ना डालें। 
3) अपने डेण्टल सर्जन से बच्चे के दाँतों का परीक्षण बीच-बीच में करवा लें। 





माता-पिता की बच्चों के डेण्टल डेवलपमेंट अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो एक दन्त चिकित्सक से भी पहले आती है ; क्योंकि आपके बच्चे की ओरल हेल्थ आपसे ही शुरू होती है। 




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अपनी संतान से कैसा व्यवहार करना उचित है ? ; How is it appropriate to treat your child ?

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