अमृतभाष्य हिंदी भाषी पाठकों के लिए ऑनलाइन पत्रिका है। जैसाकि पत्रिका के नाम से विदित है, हम इस नाम की गरिमा को ध्यान में रखते हुए सभी विषयों पर दैनिक आलेख उपलब्ध कराएँगे।संभवतः पत्रिका ज्ञान-विज्ञान,सनातन साहित्य , धर्म आलेख ,खेल विशेष ,नवीन परिधान,गृह सज्जा,बागवानी,पाक कला ,कथा साहित्य और अन्य कई विषयों पर उद्देश्यपरक पठनीय सामग्री देने हेतु कार्य करेगी।विश्वव्यापी संजाल में हिंदी भाषा के सुधि पाठकों को कुछ पठनीय व ज्ञानवर्धक,सरल साहित्य उपलब्ध हो सके ऐसा हमारा प्रयास है।
बुधवार, 31 अगस्त 2016
रविवार, 28 अगस्त 2016
बुधवार, 24 अगस्त 2016
तम्बाकू के दुष्प्रभावों से बचने के कुछ घरेलु उपाय
यदि आप गुटखा या तम्बाकू का सेवन करते हैं या बीड़ी, सिगरेट पीते हैं, तो आप इसके दुष्परिणामो को भी अवश्य जानते होंगें। सबसे बेहतर विकल्प तो इन जानलेवा वस्तुओं को छोड़ देना ही है।
परंतु फिर भी कुछ ऐसे घरेलु उपाय और सलाह है , जिनका पालन किया जाये तो इनके दुष्प्रभावो को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
१) यदि आप लगातार उपरोक्त पदार्थो का सेवन करते हैं, तो दृढ़ निश्चय करके इसकी मात्रा में कमी कीजिये।
तथा इनके लगातार सेवन से बचने के लिए अपने पास लौंग, सौंफ,ईलायची, या फिर कोई कैण्डी रखें।
२) खाली पेट में तम्बाकू सेवन सबसे ज़्यादा ख़तरनाक है अतः भरपेट भोजन या नाश्ता किये बिना तम्बाकू का सेवन न करें।
३) सुबह ब्रश करने के पूर्व हल्दी पाउडर से दाँतों को माँजे तथा इसकी पीक को ३ से ५ मिनट्स तक मुँह में रखकर चारों ओर घुमाएं फिर कुल्ला करलें। हल्दी एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक है तथा मुँह के कैंसर एवं गले के कैंसर के प्रारंभिक लक्षणों को दूर करने वाली है।
४) नहाने के पूर्व १ लीटर पानी को उबालकर पानी में १ चम्मच हल्दी का पाउडर डालें तथा इससे निकलनेवाली भाप को श्वास द्वारा तौलिया ओढ़कर ५ मिनट्स तक ग्रहण करें , सिगरेट या बीड़ी पीने से फेफड़ों की कार्यक्षमता कम हो जाती है हल्दी की भाप से इसके दुष्प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
५) रोज़ाना ख़ाली पेट तुलसी के ५ पत्तों (प्रत्येक रविवार एवं द्वादशी को छोड़कर) को चबाकर एक गिलास मटके का ताज़ा पानी पीजिये इससे आपके शरीर में निकोटिन का दुष्प्रभाव कम होगा तथा रक्तचाप भी नियंत्रित रहेगा।
६) खाने में हरी मिर्च के कुछ टुकड़े अवश्य खाएं। यह आपके मुँह में लार की मात्रा बढाकर मुँह के छालों को ठीक करती है।
७) रात को भोजन के बाद मुँह साफ़ करके ब्रश करके सोयें तथा इस समय में तम्बाकू का सेवन न करें क्योकि इससे निंद्रा में व्यवधान होता है।
८) सोने से पहले दोनों नासाछिद्रों में गाय के शुद्ध घी की ४-४ बूंदें नियमितरूप से रोज़ाना डालें,आपकी श्वाशनली,आहारनली एवं गले में हो रही समस्त परेशानियाँ दूर करनेवाला योग है यह। .
नोट:- इस लेख को पढ़ने वाले समस्त महानुभावों से मेरा निवेदन है कि यदि आप किसी भी रूप में तम्बाकू का सेवन करते हैं तो इसका त्याग करें अपने अमूल्य जीवन को इस तरह व्यर्थ न करें यदि आप यह कर लें तो इसे छोड़ना कोई मुश्किल कार्य नहीं है। उपरोक्त उपायों के अलावा कृपया रोज़ भ्रामरी प्राणायाम एवं अनुलोम-विलोम अवश्य करें इससे आपको काफी लाभ होगा।
७) रात को भोजन के बाद मुँह साफ़ करके ब्रश करके सोयें तथा इस समय में तम्बाकू का सेवन न करें क्योकि इससे निंद्रा में व्यवधान होता है।
८) सोने से पहले दोनों नासाछिद्रों में गाय के शुद्ध घी की ४-४ बूंदें नियमितरूप से रोज़ाना डालें,आपकी श्वाशनली,आहारनली एवं गले में हो रही समस्त परेशानियाँ दूर करनेवाला योग है यह। .
नोट:- इस लेख को पढ़ने वाले समस्त महानुभावों से मेरा निवेदन है कि यदि आप किसी भी रूप में तम्बाकू का सेवन करते हैं तो इसका त्याग करें अपने अमूल्य जीवन को इस तरह व्यर्थ न करें यदि आप यह कर लें तो इसे छोड़ना कोई मुश्किल कार्य नहीं है। उपरोक्त उपायों के अलावा कृपया रोज़ भ्रामरी प्राणायाम एवं अनुलोम-विलोम अवश्य करें इससे आपको काफी लाभ होगा।
जय श्री कृष्ण
सोमवार, 22 अगस्त 2016
बुधवार, 17 अगस्त 2016
युवावस्था एवं जीवन लक्ष्य
१) प्रत्येक जीवात्मा जो मनुष्य रूप में जन्मी है, जीवन में उत्थान व सफलता की सोच रखती है। अतः यह आवश्यक है कि विद्यार्थी जीवन में ही अपने सम्पूर्ण जीवन की दिशा धारा व लक्ष्य तय किये जाएं।
२) सर्वप्रथम अपने जीवन में लक्ष्य का निर्धारण करें। जीवन में क्या बनना है ,क्या करना है ? फिर इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ जुट जाओ। अंतर्मन में यह पूर्ण विश्वास लेकर चलो कि सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। निरंतर लक्ष्य प्राप्ति की धुन सवार रहे।
३) विद्यार्थी जीवन और युवावस्था जीवन के स्वर्णिम दौर हैँ , इसे व्यर्थ न जाने दें। अपने लक्ष्य को महान सामाजिक उद्देश्यों से जोड़ो। लक्ष्य सबके लिए कल्याणकारी हो। याद रखो युवावस्था का दौर निकल जाने पर सिवाय पश्चाताप के कुछ नहीं बचता है।
४) जब युवामन की सारी शक्तियाँ विचारों की , समय की , शरीर की , साधन की ; एक ही उच्च लक्ष्य की ओर लग जाती हैं तो फिर सफलता की प्राप्ति में कोई सन्देह नहीं रह जाता।
५) प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक ऐसा शक्ति केंद्र उपस्थित है , जो उसे इच्छानुसार उच्च स्थान पर पंहुचा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति में आत्मा की अनंत और अपार शक्तियाँ विद्यमान है। अपनी शक्ति को पहचानें , अपने लक्ष्य को चुनौती के रूप में स्वीकार करें। दृढ़ संकल्प करें कि मै अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करूंगा।
६) स्मरण रखें कि आपका कोई भी उद्देश्य क्यों न हो, आपकी स्वयं की शक्ति के द्वारा ही पूर्ण हो सकता है।
दूसरों पर भरोसा किया तो निराशा ही हाथ लगेगी अतः अपने भीतर पुरुषार्थ की अग्नि को इतना प्रज्वल्लित करो कि लक्ष्य की प्राप्ति पर्यन्त वह हमें चैन न लेने दे।
७) युवामन जब लक्ष्य निर्धारित करता है तो बार बार अपने मार्ग से भटक जाता है। कुसंग और दुष्ट प्रवृत्तियां मार्ग में व्यवधान की तरह खड़ी हो जाती हैं। अपने उद्देश्य को प्राप्त करना चाहते हैं , तो अपनी आंतरिक शक्तियों को बढाईये , अपने अंदर लगन , कर्मण्यता और आत्मविश्वास उत्पन्न कीजिये।
८) जब आपका आत्मविश्वास चरम पर होगा एवं लक्ष्य प्राप्ति के लिए आप दृढ़ संकल्पित होंगें , पुरुषार्थ करने से पीछे नहीं हटेंगें तो आप पाएंगे कि सफलता कदम कदम पर परछाई की तरह आपके साथ है। हाँ एक बात और यदि आपका उद्देश्य या लक्ष्य महान है , सामाजिक कल्याण की भावना से जुड़ा है, तो ईश्वरीय पथ प्रदर्शन भी आपको मिल जायेगा, ऐसा विश्वास रखिये।
९) यह पथ हर व्यक्ति के लिए खुला हुआ है। आवश्यकता है अपने भीतर की शक्तियों को पहचानने की , अपना लक्ष्य निर्धारित करने की और दृढ संकल्प के साथ उसे पाने की भूख पैदा करने की। जो किसी की प्रतीक्षा न कर स्वयं पुरुषार्थ में संलग्न होते हैं , उनके लिए कोई लक्ष्य , कोई बाधा , कोई विघ्न बड़ा नहीं है।
२) सर्वप्रथम अपने जीवन में लक्ष्य का निर्धारण करें। जीवन में क्या बनना है ,क्या करना है ? फिर इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ जुट जाओ। अंतर्मन में यह पूर्ण विश्वास लेकर चलो कि सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। निरंतर लक्ष्य प्राप्ति की धुन सवार रहे।
३) विद्यार्थी जीवन और युवावस्था जीवन के स्वर्णिम दौर हैँ , इसे व्यर्थ न जाने दें। अपने लक्ष्य को महान सामाजिक उद्देश्यों से जोड़ो। लक्ष्य सबके लिए कल्याणकारी हो। याद रखो युवावस्था का दौर निकल जाने पर सिवाय पश्चाताप के कुछ नहीं बचता है।
४) जब युवामन की सारी शक्तियाँ विचारों की , समय की , शरीर की , साधन की ; एक ही उच्च लक्ष्य की ओर लग जाती हैं तो फिर सफलता की प्राप्ति में कोई सन्देह नहीं रह जाता।
५) प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक ऐसा शक्ति केंद्र उपस्थित है , जो उसे इच्छानुसार उच्च स्थान पर पंहुचा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति में आत्मा की अनंत और अपार शक्तियाँ विद्यमान है। अपनी शक्ति को पहचानें , अपने लक्ष्य को चुनौती के रूप में स्वीकार करें। दृढ़ संकल्प करें कि मै अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करूंगा।
६) स्मरण रखें कि आपका कोई भी उद्देश्य क्यों न हो, आपकी स्वयं की शक्ति के द्वारा ही पूर्ण हो सकता है।
दूसरों पर भरोसा किया तो निराशा ही हाथ लगेगी अतः अपने भीतर पुरुषार्थ की अग्नि को इतना प्रज्वल्लित करो कि लक्ष्य की प्राप्ति पर्यन्त वह हमें चैन न लेने दे।
७) युवामन जब लक्ष्य निर्धारित करता है तो बार बार अपने मार्ग से भटक जाता है। कुसंग और दुष्ट प्रवृत्तियां मार्ग में व्यवधान की तरह खड़ी हो जाती हैं। अपने उद्देश्य को प्राप्त करना चाहते हैं , तो अपनी आंतरिक शक्तियों को बढाईये , अपने अंदर लगन , कर्मण्यता और आत्मविश्वास उत्पन्न कीजिये।
८) जब आपका आत्मविश्वास चरम पर होगा एवं लक्ष्य प्राप्ति के लिए आप दृढ़ संकल्पित होंगें , पुरुषार्थ करने से पीछे नहीं हटेंगें तो आप पाएंगे कि सफलता कदम कदम पर परछाई की तरह आपके साथ है। हाँ एक बात और यदि आपका उद्देश्य या लक्ष्य महान है , सामाजिक कल्याण की भावना से जुड़ा है, तो ईश्वरीय पथ प्रदर्शन भी आपको मिल जायेगा, ऐसा विश्वास रखिये।
९) यह पथ हर व्यक्ति के लिए खुला हुआ है। आवश्यकता है अपने भीतर की शक्तियों को पहचानने की , अपना लक्ष्य निर्धारित करने की और दृढ संकल्प के साथ उसे पाने की भूख पैदा करने की। जो किसी की प्रतीक्षा न कर स्वयं पुरुषार्थ में संलग्न होते हैं , उनके लिए कोई लक्ष्य , कोई बाधा , कोई विघ्न बड़ा नहीं है।
" मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है
हर पहलू ज़िन्दगी का इम्तिहान होता है
डरने वाले को मिलता नहीं कुछ ज़िन्दगी में
लड़ने वालों के क़दमों में जहान होता है। "
संकल्प एवं सफलता
१) मनुष्य की संकल्प शक्ति ही उसकी सफलता की जननी है। "यह मेरा दृढ़ संकल्प है" इस दृढ़ निश्चय के साथ जब हम किसी कार्य का शुभारम्भ कर प्राण पण से लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं तो सफलता निश्चित है।
२) संकल्प तप का, क्रियाशक्ति का जनक है। संकल्प से ही मनुष्य दुर्गम को जीतकर सफलता की ओर अग्रसर होता है।
३) स्मरण रखिये शक्ति का स्रोत साधनो में नहीं अपितु संकल्प में है , यदि उन्नति प्राप्त करना हो, जीवन में आगे बढ़ना हो तो अपनी संकल्प शक्ति को दृढ़ एवं इच्छाओं को तीव्र बनाये सफलता आपसे दूर सकती।
४) दृढ़ संकल्प से मनुष्य स्वल्प साधनों में भी मनुष्य अधिकतम विकास कर सकता है मस्ती भरा जीवन बीता सकता है।
५) उन्नति की आकांक्षा मनुष्य का स्वाभाविक गुण है पर यह तभी संभव है , जब मनुष्य का संकल्प बल जागृत हो।
६) विकट परिस्थितियों से हार न मानो, कठिन परिस्थितियों में अपने अंदर के धैर्य और कार्य के प्रति उत्साह को प्रबल करो। तरह-तरह के प्रयास करो, कही न कही से सफलता अवश्य प्राप्त हो ही जाएगी।
७) हमेशा सुविधाओं व साधनो की कमी से असफलता का दोष न देखें। भाग्य दूसरों या साधनो से विकसित नहीं होता। आपका भार ढोने के लिए संसार में कोई दूसरा तैयार न होगा , हमेशा इसे याद रखें।
८) हम सभी भीतर एक महान चेतना कार्य कर रही है , उसकी शक्ति अनंत है और विश्वास रखिये कि वह शक्ति आपके पास ही है , आश्रय ग्रहण करें तो प्रत्यक्ष आत्मविश्वास जाग जायेगा। संकल्प का दूसरा रूप है - आत्मविश्वास।
९) यह सच है कि संकल्प के अभाव में शक्ति का कोई महत्व नहीं है , ठीक उसी प्रकार यह भी सच है कि शक्ति के अभाव में संकल्प पूरे नही होते। संकल्प के साथ शक्ति को संयुक्त करना एक कला है, और इसमें परमावश्यक है - अथक परिश्रम।
१०) हमेशा याद रखें सफलता लघु मार्ग से प्राप्त नहीं की जा सकती है , बड़े लक्ष्य जिस संकल्प शक्ति के साथ प्रारम्भ किये जाते हैं उनमे उतना ही परिश्रम भी लगता है। सच्चाई यह है कि केवल वे ही इच्छाएँ पूरी होती है जिनके साथ शशक्त प्रयास भी हों।
११) उपयुक्त और उच्च स्तर के साधन जुटाने के लिए लोग इंतज़ार करते रहते हैं और यह तथ्य इस संभावना का ही आभास देता है शायद यह कार्य कभी आरम्भ ही न हो सकेगा।
१२) याद रखें मनुष्य की संकल्प शक्ति इतनी बड़ी है ,की वह मार्ग उत्पन्न होने वाली प्रत्येक बाधाओं को पैरों तले रौंदती हुई आगे बढ़ सकती है।
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